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________________ ( ७१ ) वगति अने त्रीजी मनुष्यगतिने विषे बएलेश्यानी जघन्य तथा उत्कृष्टी स्थिति अंतरमुहुर्तनीबे, पण तेमा एटलुं विशेष जाणवुंके मनुष्यगतिए शुल्कलेश्यानी उत्कृष्ट स्थिति केवळी मनुष्यनी अपेक्षाएनववरसउणी पूर्व क्रोमवरसनी होयडे. एटलुं विशेषजाणं. वे चोथी देवगतिए समुदाये बल्लेश्या होय तेमां कृष्णलेश्यानी जघन्यस्थिति दशहजारवरसनी अने उ. स्कृष्टी स्थितिएकपल्योपमनाश्रसंख्यातमांनाग जेटली जाणवी, जेटली कृष्णवेश्यानी उत्कृष्टी स्थिति कही तेथे एकसमयअधिक नीललेश्यानी जघन्य स्थिति ने उत्कृष्टी स्थितिपट्योपमना असंख्यातमां जागजेटली जाणवी, जेटली नीललेश्यानी उत्कृष्टीस्थितिकड़ीबे तेथी एकसमयाधिक कापोतलेश्यानी जघन्य स्थिति ने उत्कृष्टी स्थिति पल्योपमनाथसंख्यातमांनाग जेटली जाणवी, हवे तेजोलेश्यानी जघन्य स्थिति दशहजारवरसनी ने उत्कृष्टी स्थिति बेसागरोपमउपर पल्योपमना असंख्यातमांज्ञागजेटली जाधवी, जेटली तेजोलेश्यानी उत्कृष्टी स्थि तिकड़ीछे
SR No.022353
Book TitleDandakadik Dwar Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyashreeji
PublisherUmedchand Raichand
Publication Year1917
Total Pages210
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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