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(७०) शुक्ललेश्यावंतकरतां पद्मलेश्याए जीव असंख्य गुणा होय, पद्मलेश्याथी तेजोलेश्याएवर्तता जीवो असंख्य गुणाजाणवा, तेजोलेश्याएवर्तता जीवोथी कापोतलेश्याएवर्तताजीवो अनंतगुणाजाणवा. कापोतलेश्यावंतजीवोकरतां नीललेश्याएवर्तताजीवो विशेषाधिक अने नीललेश्यावंत जीवोथीपण विशेषाधिक कृष्णखेश्यावंतजीवोकह्यां ने, एटले सर्वलेश्याउँमा सर्वथी अधिकजीवो कृष्णलेश्याएहोय.
गति-नरकगति, तिर्यंचगति, मनुष्यगति अने देवगति. एचारगति तेनेविषे लेश्यानीस्थिति कहे डे-पहेलीनरकगतिमां कृष्णलेश्यानी दससागरोपमाधिकपत्योपमनोअसंख्यातमोनाग जघन्य, अनेतेत्रीश सागरोपमनीउत्कृष्टी स्थिति बे, तथा नीललेश्यानीत्रण सागरोपमाधिकपक्ष्योपमनोअसंख्यातमोनागजघन्य अने दससागरोपमाधिक पढ्योपमनोअसंख्यातमो नाग उत्कृष्टीस्थितिजे.अने कापोतलेश्यानीदशहजार वरसनीजघन्यने त्रणसागरोपमाधिक पढ्योपमनो असंख्यातमोजाग उत्कृष्टीस्थितिजाणवी. बीजी तिर्य