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________________ ( 6 ) जातना तेइंद्रियजीवो जाणवा, तेनो एक दमक, स्पर्श-रस-प्राण ने चक्कु (आंखो ) ए चार इंद्रीयवाळा जीवो जेवा के विंबी, जमरा, नमरीज, तीमो, मांखी, मांस, मछर, कसारी, करोळीयां, खकमांकडी अने पतंगीच्या विगेरे घणीजातना चौद्रीय जीव बे तेनो एक दंक ॥ एवं १० दमक थया ॥ तिर्यच पंचेंद्रिय - तियैच-तीर्डा (वांका) चाले, अथवा स्वकर्मोदयी सर्व दंरुके परिभ्रमण करे एवा पंचेद्रिय स्पर्श, रस घ्राण चक्षु धने श्रोत ( कान ) ए पांचेइंद्रियवाळा जीवो ते तिच पंचेद्रिय कदेवाय तेना मूळ पांच भेद बे. ते या प्रमाणे मांडला-काचबा, फुंक ने सुसुमार विगेरे जलचर, १ गाय, श, घोगा, हाथी वगेरे चोपगा, २ नोळीच्या, उंदर, खिसकोली वगेरे जुज परी सर्प, ३ सर्प, अजगर वगेरे जर परि सर्प, ४, चकली कागमा कावर पोपट मोर वगेरे स्वांटान्री पांखवाळा अने चामाचीमीयां वगेरे चाममानी पांखवाळा तथा संकोचेली अने वीस्तारेली पांखोवाळा ते सर्व खेचर ५ कद्देवाय. उपर क
SR No.022353
Book TitleDandakadik Dwar Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyashreeji
PublisherUmedchand Raichand
Publication Year1917
Total Pages210
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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