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________________ . (१५१) पांच दंमके जाय, तथा सनत् कुमारादिसहस्त्रार पर्यतना देवो गर्नज तियेच अने मनुष्य एम बे दंमके जाय, ने सहस्त्रारथी उपरना देवलोकना देवो एक गर्नज मनुष्यनाज दंमके जाय . पृथ्वोकाय, अपकाय, वनस्पतिकाय तथा बेइंडिय,तेऽप्रिय अने चौरिं प्रिय ए बदमकना जीवो, नवांतरे पांच एकेंजिय, त्रण विगलेंज्यि, तथा तिर्यंच पंचेंघिय अने मनुष्यना मळी दश दंगकने विषेजाय अने वानकाय तथा तेउका यनाजीवो ए उपर कहेला दश दमकमांथी एक मनु प्यनादमक सिवाय बाकीना नवदंमकने विषे जायजे. गर्नजतियेच पंचेंजियग्रने गर्नजमनुष्यनादमकमांथी संख्याता आयुष्यवाळा जीवो पोतानाकर्मानुसार २४ दमकमां जाय तथा असंख्याता आयुष्यवाळा तो तेर. देवतानाजदंगकेजायजे.संख्यातायुष्यवाळा गर्नज मनुष्यमांथी वज्ररुषननाराच संघयणना धणी कोइक जीव आले कर्म खपावीने सिगति मांहे पण जाय . एम सामान्ये चोवीसे दंगकना जीवोनीगति कही.. हवे चोवीसे दंझकना जीवोनी गति पांचसेंने
SR No.022353
Book TitleDandakadik Dwar Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyashreeji
PublisherUmedchand Raichand
Publication Year1917
Total Pages210
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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