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________________ (१५) अने तिर्यंचपंचेंडियना दमके, देवतानी पेठे एक वे त्रणथी यावत् संख्याता असंख्याता उपजेशने चवे. - गर्भज मनुष्यने विष उपजेतो एक समये वधारेमां वधारे संख्याता जीवो उपजे अने चवे, तथा समुर्बिम मनुष्यने विषे देवतानी पेठे संख्याताने असंख्याता उपजे अने चवे . सिङ्गति (मोक्ष)ने विषे जीवो उपजेतो एक समये एक, बेथी मामीने यावत् एकसोने पाठ सुधि उपजे . ते सिगतिमांथी प. मवानो अन्नाव होवाथी कोश् चवतो नथी. ॥शत चवन तथा उपजवानु संख्याधार ॥ अथ बत्रीशमुं गतिहार.. __ गति-गमन करवू-कया दंमकनो जीव कया कया दंगके जाय एमजे कहेव॒ते अहिंगतिहार जाणवू. - नारकी जीवो नारकीमाथी नीकळी, गर्नज तियच अने गर्नज मनुष्य एम बेदमकमां जाय . दशजुवनपति, व्यंतर, ज्योतिषी अने सौधर्म तथा शान देवलोकना देवो नवांतरे, पृथ्वीकाय, अपकाय, बनस्पतिकाय, पंचेंजिय तिर्यंच अने मनुष्य एम
SR No.022353
Book TitleDandakadik Dwar Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyashreeji
PublisherUmedchand Raichand
Publication Year1917
Total Pages210
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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