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________________ (१४) पमा दरेकने उत्कृष्टी स्वकाय स्थिति संख्याता हजार परश सुधीनी आणवी. तियेच पचेंजिय अने मनुष्यनी उत्कृष्टी स्वकाय स्थिति सात था जवनी कही . गर्नज तिर्यंच तथा मनुष्यो संख्याते श्रायुष्ये सातनव करे धने श्राग्मे नवे युगलीयाय ए थाने नवे करी उस्कृष्टी स्वकाय स्थिति त्रण पस्योपम थने सात पूर्व कोम वरसनी गर्भज तिर्यच तथा मनुष्य नी आणवी. सकाय जीवोनी स्वकाय स्थिति बेहजार सागरोपमनी कही , कारणके कोपण जीव वधारमा बधारे त्रसकायमांबे हजार सागरोपम सुधी रही शके ने पठी श्रवश्य एकिंद्रिय थाय, संज्ञीनी स्वकाय स्थिति उत्कृष्टी नवसें सागरोपमनी जाण. बीने पनी अवश्य असंझीमां जाय एम कडं . दे. वता तथा नारकी मरीने पाग देवता तथा नारकीमा जाय नहि अवश्य बीजी गतिए जाय. पृथ्वीकायादि उपर कहेला सघळा जीवोनी जघन्यकाय स्थिति अं. तर मुहुर्तनी जाणवी. . ॥ इति स्वकाय स्थितिधार ॥
SR No.022353
Book TitleDandakadik Dwar Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyashreeji
PublisherUmedchand Raichand
Publication Year1917
Total Pages210
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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