SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 94
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ लोक-स्वरूप एवं जीव-विवेचन (1) इनके उपभेद- जलचर जलचर श्लक्ष्ण अस्थिकच्छप मांसकच्छप शोंड भट्ट तिमि तिमिंगल रोहित कणिक पीठ पीठन शकुल सहस्रदंष्ट्र नलमीन उलूपी प्रोष्ट्री | मुदगर चट चटकर पताका अतिपतातिका स्थलचर तिर्यच पंचेन्द्रिय- भूमि पर चलने वाले जीव स्थलचर कहलाते हैं। (क) चतुष्पदी स्थलचर-चार पैरों से चलने वाले चतुष्पदी स्थलचर तिर्यंच पंचेन्द्रिय चार प्रकार के एक खुर वाले- जिसके खुर में विभाग न हो यथा- गधा, अश्व आदि जो जुगाली नहीं करते हैं। दो खुर वाले- जिसके खुर भिन्न हों अर्थात् बीच में से भेद किए हों, यथा- गाय, ऊँट, भैंस, सुअर, बकरी, मैंढ़ा, रूख, शरभ, चमर गाय, रोहिष मृग, गोकर्ण आदि जो जुगाली करने वाले प्राणी होते हैं। गंडीपद- अर्थात् वृक्ष की जड़-मूल के समान जिसके पैर हों, यथा- हाथी, गेंडा, खंडक आदि। गंडी शब्द का यह अर्थ लोकप्रकाशकार और उत्तराध्ययन सूत्र के वृत्तिकार करते हैं, जबकि प्रज्ञापना सूत्र
SR No.022332
Book TitleLokprakash Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemlata Jain
PublisherL D Institute of Indology
Publication Year2014
Total Pages422
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size36 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy