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________________ 60 लोकप्रकाश का समीक्षात्मक अध्ययन जीव वायुकाय एकेन्द्रिय कहलाते हैं। बादर वायुकाय के विविध प्रकार हैं- १. पूर्वी वायु २. उत्तरी वायु ३. पश्चिमी वायु ४. दक्षिणी वायु ५. विदिशा वायु ६. ऊर्ध्व वायु ७. अधो वायु ८. उद्भ्राम वायु ६. उत्कलिक वायु १०. गूंज वायु ११. झंझा वायु १२. संवर्त वायु १३. मंडलिक वायु १४. धन वायु १५. तनु वायु। अन्य जितनी भी इस प्रकार की हवाएँ हैं, उन्हें भी बादर वायुकाय कहा जाता है। पर्याप्त बादर वायुकायिक के वर्ण, गंध, रस, स्पर्श की अपेक्षा से हजारों भेद होते हैं। उद्घाम वायु- अनवस्थित रूप से चलने वाली वायु। उत्कलिक वायु- समुद्र की तरंग के समान चलने वाली वायु। गुंजावात वायु-आवाज करती हुई गूंजती वायु। झंझावायु- मेघ की वृष्टि सहित या अत्यन्त कठोर वायु। संवर्तक वायु- तृण आदि को घुमाकर उखाड़ने वाली वायु। मंडलिक वायु- गोलाकार घूमती वायु। घन वायु- घन परिणामी और पृथ्वी आदि का आधारभूत वायु। तनु वायु- घनवायु से नीचे रहने वाली विरल परिणामी वायु। शुद्ध वायु- मंद मंद चलने वाली सुखकारी और शीतल वायु। 5. बादर वनस्पतिकाय- वनस्पति ही जिसका शरीर है वह वनस्पतिकायिक कहलाता है। वनस्पतिकाय स्वरूपतः सूक्ष्म और बादर होती है। सूक्ष्म वनस्पतिकायिक और बादर वनस्पतिकायिक जीव के पर्याप्त और अपर्याप्त दो भेद होते हैं। बादर वनस्पतिकायिक जीव प्रत्येकशरीरी और साधारण शरीरी दो प्रकार के होते हैं। प्रत्येक शरीर बादरवनस्पति के वृक्ष, गुच्छ आदि १२ भेद तथा साधारण बादर वनस्पति के अन्तर्गत अनेक भेद हैं। बीज से सर्वप्रथम अंकुर फूटता है। तब वह सर्वसाधारण होता है और फिर योगानुसार वृद्धि होती है और वह प्रत्येक या साधारण बनता है। जब कोई 'प्रत्येकनामकर्म' वाला जीव मूल, कंद, स्कन्ध, त्वचा, पर्व, प्रवाल, पत्र, पुष्प, फल और बीज इन दस स्थानों में से किसी भी स्थान में उत्पन्न होता है तो वह 'प्रत्येक-शरीरबादर-वनस्पतिकाय' कहलाता है। 'जीव विचार' में प्रत्येक शरीर वनस्पतिकाय का लक्षण किया है कि- जिसके एक शरीर में एक जीव होता है वह प्रत्येक वनस्पतिकायिक कहलाता है। जैसे कि फल, फूल, त्वचा-छाल, काष्ठ, मूल, पत्ते और बीज प्रत्येक-शरीर-बादर वनस्पतिकायिक जीव बारह प्रकार के होते हैं वृक्षा गुच्छा गुल्मा लताश्च वल्लयश्च पर्वकाश्चैव ।
SR No.022332
Book TitleLokprakash Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemlata Jain
PublisherL D Institute of Indology
Publication Year2014
Total Pages422
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size36 MB
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