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________________ 58 लोकप्रकाश का समीक्षात्मक अध्ययन अनन्त जीवों का एक ही शरीर में जन्म, मरण, श्वासोच्छ्वास आदि एक साथ समानरूप से होना साधारण का स्वरूप है। प्रत्येक शरीर और उनमें रहने वाले जीवों की संख्या समान होती है, क्योंकि एक-एक शरीर के प्रति एक-एक जीव के ही होने का नियम है। प्रत्येकशरीर बादर अथवा स्थूल ही होता है और साधारणशरीर के बादर और सूक्ष्म दो भेद होते हैं। नित्य उपयोग में आने वाली वनस्पति यथा सन्तरा, आम, केला आदि प्रत्येक शरीरी हैं। एक ही शरीर में अनन्त जीवों के रहने से साधारण शरीर को 'निगोद' भी कहते हैं और उस शरीर में रहने वाले जीवों को भी 'निगोद' कहते हैं। गोम्मटसार के टीकाकार निगोद का निरुक्त्यर्थ करते हैं कि 'नि' अर्थात् जिन जीवों का अनन्तपना निश्चित होता है, 'गो' अर्थात् एक ही क्षेत्र और 'द' अर्थात देता है उसको निगोद कहते हैं। अर्थात् जो अनन्त जीवों को एक निवास स्थान देता है वह 'निगोद' है। निगोद ही जिन जीवों का शरीर होता है वे निगोदशरीरी कहलाते हैं।" साधारण नामक नामकर्म के उदय से जीव निगोदशरीरी होता है। साधारण शरीर के सूक्ष्म और बादर दो भेद होने से निगोद भी सूक्ष्म और बादर दो स्वरूप वाला होता है। जिस प्रकार इस सम्पूर्ण लोक में पुद्गल रहित कोई प्रदेश नहीं है उसी प्रकार सूक्ष्म निगोद से भी रहित लोक का कोई स्थान नहीं है। अर्थात् यह लोक सूक्ष्म निगोदों से ठसाठस भरा हुआ है।" सूक्ष्म होने से यह हमारे ज्ञान के विषय नहीं बनते हैं। आलू, अदरक, हल्दी, शकरकन्द, मूली आदि बादर निगोद के प्रकार हैं। बादर निगोद अथवा साधारण वनस्पतिकाय का वर्णन बादरवनस्पतिकाय के अन्तर्गत किया गया है। बादर एकेन्द्रिय 1. बादर पृथ्वीकायिक- पृथ्वीनामकर्म के उदय से पृथ्वी स्वभाव वाले परिणमित पुद्गल 'पृथ्वी' कहलाते हैं। काय का अर्थ है- शरीर। अतः पृथ्वीकायनामकर्म के उदय से जो जीव पृथ्वी को शरीर रूप में धारण करते हैं वे 'पृथ्वीकायिक' कहलाते हैं। बादरा पथिवी द्वेधामदुरेका खरापरा। भेदाः सप्त मृदोस्तत्र वर्णभेदविशेषजा।।" अर्थात् बादर पृथ्वी दो प्रकार की होती है- कोमल और कठोर। प्रज्ञापनासूत्र में जिसे श्लक्ष्ण (मृदु) और खर के नाम से निरूपित किया है।" श्लक्ष्ण बादर पृथ्वी सात प्रकार की होती है। कोमल या श्लक्ष्ण पृथ्वी वर्ण भिन्नता से सात भेदों वाली है- काली, हरी, पीली, लाल, सफेद, पाण्डु और पनकमृत्तिका। किसी देश में पाण्डु रंग के कारण ‘पाण्डु' नाम से प्रसिद्ध पृथ्वी और नदी आदि की बाढ़ से अत्यन्त नमी वाले प्रदेश की मिट्टी 'पनकमृत्तिका' कहलाती है।६२ खर अर्थात् कठोर पृथ्वी के ४० भेद होते हैं। १८ भेद मणि के और २२ भेद अन्य हैं। मणि
SR No.022332
Book TitleLokprakash Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemlata Jain
PublisherL D Institute of Indology
Publication Year2014
Total Pages422
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size36 MB
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