SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 401
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 372 लोकप्रकाश का समीक्षात्मक अध्ययन सहित चार भाव होते हैं। क्षायोपशमिकसम्यग्दृष्टि जीव के क्षायोपशमिक सम्यक्त्व होने से चतुर्थ गुणस्थान के क्षायोपशमिक सम्यक्त्वी को तीन भाव होते हैं, परन्तु यदि जीव क्षायिक सम्यग्दृष्टि अथवा उपशम-सम्यग्दृष्टि हो तो उसे चार भाव होते हैं, क्योंकि उनका सम्यक्त्व क्रमशः क्षायिक भाव या औपशमिक भाव जन्य है। ___ आठवें अपूर्वकरण गुणस्थान में चार भाव होते हैं। तीन भाव पूर्ववत् क्षायोपशमिक, औदयिक और पारिणामिक होते हैं। चौथा भाव औपशमिक सम्यक्त्व होने पर औपशमिक अथवा क्षायिक सम्यक्त्व होने पर क्षायिक होता है।" अनिवृत्तिबादर और सूक्ष्मसंपराय इन नौवें और दसवें गुणस्थानों में चार अथवा पाँच भाव होते हैं। क्षायोपशमिक, औदयिक और पारिणामिक ये तीन भाव पूर्ववत् हैं। चौथा भाव उपशमश्रेणि वाले जीव को औपशमिक सम्यक्त्व होने से औपशमिक भाव होता है अथवा क्षपक श्रेणिवाले जीव को क्षायिक सम्यक्त्व होने से क्षायिक भाव होता है। क्षायिक सम्यक्त्वी जीव जब उपशमश्रेणि प्रारम्भ करता है, उस समय उपशम भाव का चारित्र होने से औपशमिक भाव भी हो जाता है। इस प्रकार नौवें और दसवें गुणस्थान में चार अथवा पाँच भाव होते हैं। उपशान्तमोहनीय ११वें गुणस्थान में चार अथवा पाँच भाव होते हैं। उपशम श्रेणि वाले को चार भाव और क्षायिक सम्यक्त्वी (क्षपक श्रेणि जीव) को पाँच भाव होते हैं। बारहवें क्षीणमोहनीय गुणस्थान में चार भाव होते हैं। क्षायोपशमिक, औदयिक और पारिणामिक तीन पूर्ववत् तथा क्षायिकसम्यक्त्व होने से चौथा क्षायिक भाव होता है। तेरहवें और चौदहवें सयोगी केवली एवं अयोगी केवली गुणस्थान में तीन भाव औदयिक, क्षायिक और पारिणामिक होते हैं। क्षायिक भाव के केवलज्ञान, केवलदर्शन आदि भेद, औदयिक भाव के गति जाति आदि भेद और पारिणामिक भाव का जीवत्व होता है।" इस प्रकार गुणस्थान में पाँच मूल भावों का कथन किया जाता है। | क्रम | चौदह गुणस्थान । पाँच मूल भाव मिथ्यात्व | क्षायोपशमिक, औदयिक, पारिणामिक (३) क्षायोपशमिक, औदयिक, पारिणामिक (३) मिश्र क्षायोपशमिक, औदयिक, पारिणामिक (३) अविरत सम्यग्दृष्टि | औपशमिक/क्षायिक, क्षायोपशमिक, औदयिक एवं पारिणामिक (४) देशविरत सम्यग्दृष्टि औपशमिक/सायिक, क्षायोपशमिक, औदयिक एवं पारिणामिक (४) । औपशमिक/क्षायिक, क्षायोपशमिक, औदयिक एवं पारिणामिक (४) | सास्वादन |m | | |ur प्रमत्त
SR No.022332
Book TitleLokprakash Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemlata Jain
PublisherL D Institute of Indology
Publication Year2014
Total Pages422
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size36 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy