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________________ भावलोक 371 क्रम भाव कर्म क्षायिक भाव ] K] | औपशमिक भाव । मोहनीय कर्म का (सर्वतः उपशम मोहनीय कर्म का होता है व देशतः | आठों कों का होता है) | आठों कर्म का (दसवें गुणस्थान के अन्त में) मोहनीय का तथा चार अघाती का क्षय चौदहवें गुणस्थान के अंत में। क्षायोपशमिक भाव | चार घाती कर्मों का (केवलज्ञानावरण और केवलदर्शनावरण का क्षयोपशम नहीं होता, क्षय ही होता है।) औदयिक भाव | आठों कर्मों का ५ । पारिणामिक भाव । आठों कर्मों का गतिआश्रितभाव मनुष्य, तिथंच, देव और नरक रूप चारों गतियों में पाँच भाव होते हैं। पारिणामिक भाव का जीवत्व, औपशमिक और क्षायिक भाव का सम्यक्त्व, क्षायोपशमिक भाव की इन्द्रिय तथा औदयिक भाव की गति इस प्रकार चारों गतियों में उपर्युक्त पंच भाव होते हैं नृतिर्यग्देव नरकरूपे गति चतुष्टये। पंचापि भावा ज्ञेया यज्जीवत्वं पारिणामिकं ।। सम्यक्त्वमौपशमिकं क्षायिकं चेन्द्रियाणि च । क्षायोपशमिकान्यासु गतिरौदयिकी भवेत् ।।" सिद्ध गति में क्षायिक और पारिणामिक दो भाव ही होते हैं। क्षायिक भाव का ज्ञानादि और पारिणामिक भाव का जीवत्व इस तरह सिद्धगति में दो भाव होते हैं __तौ द्वावेव सिद्धगतौ क्षायिकपारिणामिकौ।। ज्ञानादि क्षायिकं तत्र जीवत्वं पारिणामिकम् ।।" गुणस्थानों में भाव प्रथम तीन गुणस्थान -मिथ्यादृष्टि, सास्वादन और मिश्र इनमें क्षायोपशमिक, औदयिक और पारिणामिक तीन भाव होते हैं। औदयिक भाव से यथायोग्य गति आदि, पारिणामिक भाव से जीवत्वादि तथा क्षायोपशमिक भाव से इन्द्रियादि मिलती हैं मिथ्यादृष्टौ तथा सास्वादने मिश्रगुणेऽपि च । तत्राद्यत्रितये मिश्रौदयिक पारिणामिकाः ।।" चौथे से सातवें गुणस्थान (अविरत सम्यग्दृष्टि, देशविरत श्रावक, प्रमत्त साधु, अप्रमत्त साधु) में पूर्वोक्त तीन-औदयिक, पारिणामिक एवं क्षायोपशमिक और क्षायिक अथवा औपशमिक
SR No.022332
Book TitleLokprakash Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemlata Jain
PublisherL D Institute of Indology
Publication Year2014
Total Pages422
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size36 MB
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