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________________ 331 काललोक अतः अभव्यजीव की अपेक्षा से सचेतन द्रव्य का द्रव्यकाल अनादि-अनन्त भी है। अभव्याश्चाभव्यतयाऽनाद्यनंतस्थितौ स्थिताः । द्रव्यस्येति सचित्तस्य स्थितिरुक्ता चतुर्विधा ।। धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय और आकाशास्तिकाय अचेतन द्रव्य अनादि और अनन्त हैं। अतः इन तीनों की अपेक्षया अचेतन द्रव्य का द्रव्यकाल अनादि-अनन्त है।०० 4. अदाकाल अढ़ाई द्वीप क्षेत्र में सूर्य-चन्द्र आदि ग्रहों, नक्षत्रों की गति क्रिया से होने वाला काल अद्धाकाल कहलाता है। सूर्यादिक्रियया व्यक्तीकृतो नृक्षेत्रगोचरः। गोदोहादिक्रियानिळपेक्षोऽद्धाकाल उच्यते।।" अद्धाकाल समय, आवलिका, मुहूर्त आदि भेदों से निरन्तर प्रवृत्त रहता है- 'अद्धाकालस्यैव भेदाः समयावलिकादयः।०२ 5. यथायुष्ककाल - समय, आवलिकादि भेद रूप अद्धाकाल जीवों के आयुष्य मात्र की विशिष्टता का कथन करने पर यथायुष्ककाल कहलाता है- 'यश्चाद्धाकाल एवायुष्मतामायुर्विशेषितः । वर्तनादिमयः ख्यातः स यथायुष्कसंज्ञया। ___ नारकी, तिथंच, मनुष्य और देवता जितने आयुष्यकर्म का उपार्जन कर उसका जीवनकाल में अनुभव करते हैं वह यथायुष्ककाल होता है । यद्येन तिर्यग्मनुजा दिक्जीवितमर्जितं। तस्यानुभवकालो यः स यथायुष्क उच्यते।। 6. उपक्रमकाल जीव जिस क्रिया अथवा उपाय से दूर रही वस्तु को नजदीक लाता है वह उपक्रम कहलाता है और उपक्रम पूर्ण होने में लगने वाला काल 'उपक्रमकाल' कहलाता है। उपाध्याय विनयविजय भी कहते हैं येनोपक्रम्यते दूरस्थं वस्त्वानीयतेंऽतिकं । तैस्तैः क्रियाविशेषैः स उपक्रम इति स्मृतः ।। उपक्रमणमभ्यर्णा नयनं वा दवीयसः । उपक्रमस्तत्कालोऽपि ह्युपचारादुपक्रमः ।। यहाँ उपक्रम से तात्पर्य किसी वस्तु को दूर से पास में लाना मात्र नहीं है, अपितु उदय में न
SR No.022332
Book TitleLokprakash Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemlata Jain
PublisherL D Institute of Indology
Publication Year2014
Total Pages422
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size36 MB
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