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________________ 330 लोकप्रकाश का समीक्षात्मक अध्ययन 1. नामकाल लोकव्यवहार के लिए गुण-अवगुण की अपेक्षा न रखते हुए किसी भी वस्तु, वाच्य या व्यक्ति का 'काल' यह संज्ञा अथवा नाम रखना नामकाल निक्षेप है। काल का यह लोक व्यवहार दिखाई देने से नामकाल को काल के प्रकार में परिगणित किया गया है। 2. स्थापनाकाल किसी वस्तु अथवा व्यक्ति की प्रतिकृति मूर्ति अथवा चित्र में काल का गुण-अवगुण सहित आरोपण करना स्थापनाकाल कहलाता है।" रेतघड़ी में जितनी देर में रेत एक खण्ड से दूसरे खण्ड में आती है, उसमें एक घंटे की स्थापना करना आदि स्थापना काल है। 3.द्रव्यकाल सचेतन और अचेतन द्रव्यों की स्थिति ही द्रव्यकाल कहलाती है। सचेतन और अचेतन द्रव्यों की स्थिति चार प्रकार की उल्लिखित हैं:(1) सादि सान्त- देव, नारक, मनुष्य आदि पर्यायों की स्थिति आदि और अन्त सहित होती है। अतः इन सचेतन द्रव्यों की अपेक्षा से द्रव्यकाल सादि-सान्त है। कहा भी है सचेतनस्य द्रव्यस्य सादिः सांता स्थितिर्भवेत्। सुरनारकमादि - पर्यायाणामपेक्षया।।" - - अचेतन द्रव्यों में पुद्गलद्रव्य के द्विप्रदेशादि स्कन्ध आदि और अन्त सहित होते हैं। अतः पुद्गलद्रव्य की अपेक्षा से अचेतन द्रव्य का द्रव्यकाल सादि-सान्त है। (2) सादि अनन्त- सिद्ध के जीव की सिद्ध अवस्था का आरम्भ होता है और उस अवस्था का कभी अन्त नहीं होता है। अतः सिद्ध जीव की अपेक्षा से सचेतन द्रव्य का द्रव्यकाल सादि अनन्त होता है-सिद्धाः सिद्धत्वमाश्रित्य साधनंता स्थितिश्रिताः।" • अचेतन द्रव्यों में काल द्रव्य के भविष्यकाल की पर्याय आदि सहित और अन्त रहित होती है। अतः भविष्यकाल की पर्याय की अपेक्षा अचेतन द्रव्य का द्रव्यकाल सादि-अनन्त है। (3) अनादि-सान्त- भव्य जीव का भव्यत्व अनादि है और मोक्ष-प्राप्ति पर उस भव्यता का अन्त होने से वह सान्त है। अतः भव्य जीव की अपेक्षा से सचेतन द्रव्य का द्रव्यकाल अनादि-सान्त होता है-भव्याभव्यत्वमाश्रित्यानादि सांता गताः स्थिति।" अचेतन द्रव्यों में कालद्रव्य के भूतकाल की पर्याय अनादिकाल से चलती है और उसका अन्त होता है। अतः भूतकाल की पर्याय अपेक्षा अचेतन द्रव्य का द्रव्यकाल अनादि सान्त है। " (4) अनादि अनन्त- अभव्य जीव की अभव्यता अनादि है और वह कभी समाप्त नहीं होती है।
SR No.022332
Book TitleLokprakash Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemlata Jain
PublisherL D Institute of Indology
Publication Year2014
Total Pages422
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size36 MB
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