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________________ प्रथम अध्याय उपाध्याय विनयविजय : व्यक्तित्व एवं कृतित्व सम्राट अकबर के प्रतिबोधक के रूप में जैनाचार्य श्री हीरविजयसूरि का नाम इतिहास विश्रुत है। श्री हीरविजयसूरि के सम्पर्क में आकर सम्राट अकबर जैनधर्म की तप-साधना, समता एवं क्षमा भाव से अत्यन्त प्रभावित हुए। आचार्य हीरविजयसूरि का समय विक्रम संवत् १५८३ से संवत् १६५२ तक रहा। ये श्वेताम्बर परम्परा में तपोगच्छ सम्प्रदाय के महान् प्रभावशाली आचार्य थे। इन्हीं की शिष्य परम्परा में उपाध्याय श्री विनयविजय जी जैन धर्म-दर्शन के विशेषज्ञ विद्वान हुए। उपाध्याय विनयविजय का एक स्थान पर सम्पूर्ण जीवन परिचय प्राप्त नहीं होता है। गुजराती भाषा में 'विनय सौरभ' नामक कृति में प्रो. हीरालाल रसिक दास कापडिया ने उपाध्याय विनयविजय जी के जीवन एवं कृतित्व के सम्बन्ध में प्रकाश डाला है। लोकप्रकाश ग्रन्थ की भूमिका में भी विवेचकों ने कुछ परिचय दिया है। इन दोनों स्रोतों के अतिरिक्त शान्तसुधारस, हैमलघुप्रक्रिया, नयकर्णिका एवं इन्दुदूत आदि कृतियों के भूमिका पृष्ठ भी उपाध्याय विनयविजय जी के परिचय के आधार बने हैं। जन्मएवंदीक्षा उपाध्याय विनयविजय का जन्म विक्रम संवत् १६६१ में गुजरात की धरा पर हुआ। विनयविजय जी ने स्वयं लोकप्रकाश ग्रन्थ के प्रत्येक सर्ग के अन्त में अपने गुरु वाचकश्रेष्ठ कीर्तिविजय एवं अपने माता-पिता का नामोल्लेख किया है। यथा विश्वाश्चर्यदकीर्ति-कीर्तिविजयश्रीवाचकेन्द्रान्तिष । द्राजश्रीतनयोऽतनिष्ट विनयः श्रीतेजपालात्मजः ।।' अर्थ- विश्व को आश्चर्य चकित कर देने वाली कीर्ति है जिनकी, उन 'कीर्तिविजय' जी के उपाध्याय के शिष्य और माता 'राजश्री' तथा पिता श्री 'तेजपाल' के पुत्र विनयविजय ने यह रचना की है। हेमलघुप्रक्रिया की बृहवृत्ति में कहा गया है - ___यां शिष्योद्भूतकीर्तिकीर्तिविजयश्रीवाचकाहर्मणे । - राजश्रीतनयो व्यधत्त विनयः श्रीतेजपालात्मजः।। इस श्लोक से भी स्पष्ट है कि विनयविजयजी के गुरु कीर्तिविजय जी थे एवं माता-पिता के नाम क्रमशः राजश्री एवं श्री तेजपाल थे। इन उल्लेखों से यह भी ज्ञात होता है कि विनयविजयजी
SR No.022332
Book TitleLokprakash Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemlata Jain
PublisherL D Institute of Indology
Publication Year2014
Total Pages422
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size36 MB
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