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________________ 267 जीव-विवेचन (4) संज्ञी तिथंच के होते हैं। यदि सातवें नरक की उत्कृष्ट स्थिति वाला जीव पर्याप्त संज्ञी तिर्यच में उत्पन्न हो तो उत्कृष्ट चार जन्म करता है। इस स्थिति में दो जन्म (३३ सागरोपम x २ =६६ सागरोपम) सातवें नरक के और दो जन्म सन्नी तिर्यंच के करता है।३३ आनत नामक नौवें देवलोक से लेकर सर्वार्थसिद्ध तक में एक मनुष्य गति के जीव ही आते हैं और उसी गति में जाते हैं।" आनत आदि चार देवलोक अर्थात् वें से १२वें देवलोक के और सर्व नौ ग्रैवेयक के देव मनुष्य गति में उत्कृष्ट छह जन्म करते हैं। विजय आदि चार अनुत्तर विमान तक के देव मनुष्य गति प्राप्त कर उत्कृष्ट चार जन्म करते हैं। सर्वार्थसिद्ध में उत्पन्न देव मनुष्य गति प्राप्त कर जघन्य और उत्कृष्ट दो जन्म ही करता है एवं शेष नौवें देवलोक से लेकर अपराजित नामक अनुत्तरविमान तक के देव मनुष्य गति में जघन्य दो जन्म करते हैं। भवनपति, व्यन्तर, ज्योतिषी और पहला, दूसरा देवलोक तक के देव में तिर्यच और मनुष्य दो ही गति के जीव आते हैं और दो ही गति में जाते हैं। परन्तु चारों गति के चौबीस दण्डक की अपेक्षा ये जीव दो दण्डक तिर्यच व मनुष्य से आते हैं तथा पांच दण्डक पृथ्वीकाय, अप्काय, वनस्पतिकाय, तिर्यंच पंचेन्द्रिय और मनुष्य में जाते हैं। उपर्युक्त सभी देव यदि पृथ्वीकाय, अप्काय और वनस्पतिकाय में उत्पन्न हों तो जघन्य और उत्कृष्ट दो ही भव करते हैं क्योंकि पृथ्वीकाय आदि में से च्यवन कर देवगति में उत्पत्ति संभव नहीं है। अतः इनका जघन्य और उत्कृष्ट दो जन्म है।" वायुकाय और तेजस्काय में देवों की गति नहीं होती है इसलिए इनका भवसंवेध नहीं बनता है।" औदारिक से औदारिक शरीरधारी जीवों का भवसंवेध विश्लेषण युगलिक जीव में तिथंच और मनुष्य दो गति के जीव ही आते हैं और इनकी गति एक देवगति में ही होती है। दण्डक की अपेक्षा जीव के २४ दण्डक में से मनुष्य और तिर्यंच दो दण्डक के जीव युगलिक में आते हैं तथा ये युगलिक १३ दण्डक-१० भवनपति के दस दण्डक, एक व्यन्तर, एक ज्योतिषी और एक वैमानिक में जाते हैं।"२ असंख्याता आयुष्य वाले युगलिक मनुष्य व तिर्यच जीवों में यदि सन्नी, असन्नी तिर्यंच और सन्नी मनुष्य उत्पन्न हो तो जघन्य तथा उत्कृष्ट दो जन्म ही करते हैं क्योंकि युगलिक जीव मृत्यु के अनन्तर जन्म में देव गति ही प्राप्त करते हैं। अतः इनका जघन्य एवं उत्कृष्ट भवसंवेध दो जन्म ही है।" पृथ्वीकाय, अप्काय और वनस्पतिकाय में तिर्यच, मनुष्य और देवगति से जीव आते हैं और ये जीव दो गति तिर्यंच और मनुष्य में जाते हैं। दण्डक की अपेक्षा से नारकी को छोड़कर शेष २३ दण्डक के जीव इनमें आते हैं तथा ये जीव औदारिक के दस दण्डक-५ स्थावर, ३ विकलेन्द्रिय, १
SR No.022332
Book TitleLokprakash Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemlata Jain
PublisherL D Institute of Indology
Publication Year2014
Total Pages422
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size36 MB
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