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________________ 266 लोकप्रकाश का समीक्षात्मक अध्ययन और सभी नौ ग्रैवेयक में उत्पन्न हो तो उत्कृष्ट सात भव करता है। इसमें तीन भव देवगति के और चार भव मनुष्य गति के करता है। यदि वह मनुष्य नौवें देवलोक में उत्पन्न हुआ हो तो वह पुनः पुनः उसी देवलोक में उत्पन्न होता है, अन्य देवलोक में नहीं। ऐसी स्थिति होने पर ही उपर्युक्त सात जन्मों की गणना की संगति बन सकती है अन्यथा नहीं। इसी तरह दसवें, ग्यारहवें और बारहवें देवलोक में भी होता है। परन्तु ग्रैवेयक में ऐसा नहीं होता है क्योंकि सभी नौ ग्रैवेयकों का क्षेत्र एक ही है। अतः वह मनुष्य कभी प्रथम ग्रैवेयक में तो कभी दूसरे, तीसरे आदि में उत्पन्न हो सकता है। क्योंकि ग्रैवेयकों का स्थान एक ही होता है जबकि बारह देवलोकों का क्षेत्र भिन्न-भिन्न स्वतंत्र है। विजय, वैजयन्त, जयन्त और अपराजित इन चार अनुत्तर विमान में यदि संज्ञी मनुष्य उत्पन्न हो तो वह उत्कृष्ट से पांच जन्म और जघन्य से दो जन्म करता है। उत्कृष्ट पांच जन्मों में तीन जन्म मनुष्य गति के और दो जन्म चार अनुत्तर विमान के होते हैं और यदि विजयादि चार अनुत्तर विमान के देव मनुष्य गति प्राप्त करते हैं तब उत्कृष्ट चार जन्म करते हैं एवं जघन्य दो जन्म धारण करते हैं।२६ युगलिक मनुष्य और तिर्यंच यदि भवनपति, व्यंतर, ज्योतिषी और सौधर्म, ईशान देवलोक में उत्पन्न होता है तब वह जघन्य तथा उत्कृष्ट दो भव ही करता है क्योंकि देवगति में से पुनः युगलिकों में उत्पत्ति नहीं होती। युगलिक भी मरकर पुनः युगलिक नहीं बनता। युगलिक की स्थिति उत्कृष्ट तीन पल्योपम है इसलिए वह ईशान देवलोक तक ही गति कर सकता है क्योंकि ईशान देवलोक की स्थिति एक पल्योपम से अधिक है एवं तीसरे देवलोक की स्थिति तीन पल्योपम से अधिक है। अतः युगलिक तीसरे देवलोक तक नहीं जा सकता है। असंज्ञी पर्याप्त तिर्यंच यदि रत्नप्रभा नामक प्रथम नारकी, भवनपति और व्यन्तर में उत्पन्न हो तो जघन्य और उत्कृष्टतः दो जन्म ही करता है क्योंकि नरक और देवगति में उत्पन्न होने के पश्चात् वहां से अनन्तर भव में पुनः असंज्ञी तिथंच में उसकी उत्पत्ति नहीं होती है।" भवनपति, व्यन्तर, ज्योतिष्क, आठवें देवलोक तक के देव और प्रथम छह नरक में उत्पन्न छह नारकी यदि पर्याप्त संज्ञी तिथंच व मनुष्य में उत्पन्न हो तो उत्कृष्ट आठ जन्म एवं जघन्य दो जन्म करते हैं। जिसमें चार जन्म देव अथवा नारकी के और चार जन्म मनुष्य अथवा तिर्यच के करते सातवीं नारकी की जघन्य स्थिति २२ सागरोपम एवं उत्कृष्ट स्थिति ३३ सागरोपम होती है। यदि जघन्य स्थिति वाला सातवीं नारकी पर्याप्त संज्ञी तिर्यच में उत्पन्न हो तो उत्कृष्ट छह जन्म करता है। जिसमें तीन जन्म (२२ सागरोपम x ३ =६६ सागरोपम) सातवें नरक के एवं तीन जन्म पर्याप्त
SR No.022332
Book TitleLokprakash Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemlata Jain
PublisherL D Institute of Indology
Publication Year2014
Total Pages422
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size36 MB
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