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________________ 186 लोकप्रकाश का समीक्षात्मक अध्ययन धारणा- अवग्रह, ईहा और अवाय द्वारा प्राप्त बोध को स्मृति में रखना और विस्मृत न होने देना धारणा मतिज्ञान है। प्रतिपत्ति, अवधारण, अवस्थान, निश्चय, अवगम और अवबोध ये सभी शब्द धारणा के पर्यायवाची हैं। _ अवग्रह ज्ञान एक समय के लिए होता है, ईहा ज्ञान और अवाय ज्ञान अन्तर्मुहूर्त के लिए तथा धारणा ज्ञान संख्यात और असंख्यात समय के लिए होता है। मतिज्ञान के भेद- अर्थावग्रह, ईहा, अवाय और धारणा मतिज्ञान पांच इन्द्रियों और मन से होता है अतः इन छह से गुणा करने पर मतिज्ञान के २४ भेद होते हैं। व्यंजनावग्रह मतिज्ञान चक्षुरिन्द्रिय के अतिरिक्त चार इन्द्रियों से होता है। अतः इसके चार भेद मिलाने पर २८ भेद होते हैं। इन २८ भेदों के बहु-बहुविधादि बारह-बारह उपभेद होते हैं। इस प्रकार मतिज्ञान के ३३६ (२८ ग १२) भेद होते हैं और औत्पत्तिकी, वैनयिकी, कार्मिकी और पारिणामिकी इन चार प्रकार की बुद्धियों को मिलाने पर मतिज्ञान के ३४० भेद होते हैं। मतिज्ञान के भेद-प्रभेद मतिज्ञान अवग्रह इहा अवाय धारणा व्यवंजनावग्रह स्पर्शनेन्द्रिय रसनेन्द्रिय घ्राणेन्द्रिय श्रोत्रेन्द्रिय अर्थावग्रह स्पर्शनेन्द्रिय रसनेन्द्रिय घ्राणेन्द्रिय चक्षुरिन्द्रिय श्रोत्रेन्द्रिय मन स्पर्शनेन्द्रिय रसनेन्द्रिय घ्राणेन्द्रिय चक्षुरिन्द्रिय श्रोत्रेन्द्रिय मन स्पर्शनेन्द्रिय रसनेन्द्रिय घ्राणेन्द्रिय चक्षुरिन्द्रिय श्रोत्रेन्द्रिय मन स्पर्शनेन्द्रिय रसनेन्द्रिय घ्राणेन्द्रिय चक्षुरिन्द्रिय श्रोत्रेन्द्रिय मन - - बहु बहुविध क्षिप्र अनिःसृत असंदिग्ध ध्रुव एक एकविध अक्षित निःसृत संदिग्ध अध्रुव 2. श्रुतज्ञान मतिज्ञानपूर्वक उत्पन्न होने वाला ज्ञान श्रुतज्ञान है। मति और श्रुत इन दोनों में कारणकार्य भाव पाया जाता है। मतिज्ञान के आश्रय से युक्ति, तर्क अनुमान व शब्दार्थ द्वारा जो परोक्ष पदार्थों का ज्ञान होता है, वह श्रुतज्ञान है। यथा धूम को देखकर अग्नि के अस्तित्व की, शास्त्र को पढ़कर तत्त्वों की, लोक-परलोक की, आत्मा-परमात्मा आदि की जानकारी, यह सब श्रुतज्ञान है। इसकी उत्पत्ति
SR No.022332
Book TitleLokprakash Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemlata Jain
PublisherL D Institute of Indology
Publication Year2014
Total Pages422
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size36 MB
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