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________________ जीव-विवेचन (3) . 185 होने वाला ज्ञान परोक्षज्ञान कहलाता है। न्याय व्यवस्था के अनुसार ज्ञान इन दो रूपों में प्रतिष्ठित होता है और स्वरूपगत भेद के आधार पर ज्ञान के पांच प्रकार प्रतिपादित हैं"- मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मनःपर्यवज्ञान और केवलज्ञान। इन पांच ज्ञानों में प्रथम दो को परोक्ष और शेष तीन को प्रत्यक्ष कहते हैं।” ज्ञान के स्वरूपगत भेद का वर्णन इस प्रकार है1. मतिज्ञान मतिज्ञानावरण कर्म के क्षयोपशम से और इन्द्रिय तथा मन के द्वारा पदार्थों को जानना 'मतिज्ञान' कहलाता है।२० ज्ञेयपदार्थ और इन्द्रिय विशेष का सन्निकर्ष होने पर मन की सहायता से जो वस्तुबोध उत्पन्न होता है वह मतिज्ञान है। पदार्थों का यह ज्ञान चार प्रकार से होता है- अवग्रह, ईहा, अवाय और धारणा। कहा भी है अवग्रहेहावायाख्या धारणा चेति तीर्थपैः। मतिज्ञानस्य चत्वारो मूलभेदाः प्रकीर्तिताः ।।" अवग्रह- किसी भी पदार्थ के स्वरूपमात्र के ग्रहण अर्थात् दर्शन के पश्चात् इन्द्रियों के द्वारा यथायोग्य विषयों का अव्यक्त रूप से जो आलोचनात्मक ग्रहण होता है वह अवग्रह कहलाता है। यथा- सामान्य अवबोध 'यह कुछ है' के पश्चात् होने वाला ज्ञान। अवग्रह, ग्रहण, आलोचन और अवधारण ये सभी एकार्थक शब्द हैं। अर्थावग्रह और व्यंजनावग्रह ये अवग्रह के दो प्रकार हैं। अव्यक्त शब्दादि का समूह व्यंजन होता है। अतः अव्यक्त पदार्थ का ग्रहण व्यंजनावग्रह कहलाता है। अव्यक्त के ग्रहण के अनन्तर ईहा, अवाय व धारणा मतिज्ञान नहीं होते हैं। व्यंजनावग्रह के अनन्तर मात्र अर्थावग्रह मतिज्ञान ही होता है।" अप्राप्त अर्थात् अस्पृष्ट पदार्थ को ग्रहण न करने के कारण व्यंजनावग्रह अप्राप्यकारी चक्षुइन्द्रिय और मन से नहीं होता है जबकि अर्थावग्रह प्राप्त और अप्राप्त दोनों के ग्रहण करने से पांचों इन्द्रियों एवं मन से होता है। ईहा- अवग्रह के द्वारा पदार्थ के एक देश का ग्रहण करने के पश्चात् उसके शेष अंश को जानने के लिए या निश्चय करने के लिए की गई चेष्टा विशेष ईहा होती है। यथा- 'यदि वह वस्तु श्वेत है तो श्वेत ध्वजा होनी चाहिए' यह जिज्ञासा ईहा है। ईहा, तर्क, परीक्षा, विचारणा और जिज्ञासा ये सभी शब्द पर्यायवाची हैं। अवाय- अवग्रह और ईहा के द्वारा जाने गए पदार्थ के विषय में सम्यक्-असम्यक् का विचार करने की निश्चयात्मक ज्ञान की प्रवृत्ति अवाय कहलाती है। जैसे 'वह श्वेत वस्तु ध्वजा ही है' यह अवाय मतिज्ञान है। अवाय, अपगम, अपनोद, अपव्याध, अपेत, अपगत, अपविद्ध और अपनुत्त ये सभी शब्द एकार्थक हैं।
SR No.022332
Book TitleLokprakash Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemlata Jain
PublisherL D Institute of Indology
Publication Year2014
Total Pages422
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size36 MB
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