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________________ 106 लोकप्रकाश का समीक्षात्मक अध्ययन १०२. सर्वक्षेत्रगुरुत्वान्महाप्रमाणां गजनयुतत्वात् वा। इदमुत महाविदेहाभिधसुरयोगान्महाविदेहाख्यम् ।।-लोकप्रकाश, 16.393 १०३. प्रवचनसारोद्धार, द्वार 164, गाथा 1054 . १०४. अत्र देवकुरुर्नाम देवः पल्योपम स्थितिः। वस्त्यतस्तथा ख्याता यद्वेदं नाम शाश्वतम् ।।-लोकप्रकाश, 17.398 १०५. लोकप्रकाश, 17.1219 १०६. रूप्यहिरण्यशब्देन सुवर्णमपि वोच्यते। ततो हिरण्यवन्तौ द्वौ तन्मयत्वात् धराधरौ।। रुक्मी च शिखरी चापि तद्धिरण्यवतोरिदम्। हैरण्यवंतमित्याहुः क्षेत्रमेतत् महाधियः । लोकप्रकाश, 19.56 और 57 १०७. लोकप्रकाश 19.58 १०६. लोकप्रकाश, 19.26 और 27 १०६. लोकप्रकाश, 16.328 ११०. लोकप्रकाश, 16.393 १११. प्रज्ञापना सूत्र, प्रथम प्रज्ञापना पद, सुत्त 96 ११२. प्रज्ञापना सूत्र, प्रथम प्रज्ञापना पद टीका, सुत्त 98 ११३. 'सम्मूर्छिमा गर्भजाश्च द्विविधा मनुजा अपि।'-लोकप्रकाश, 7.1 ११४. लोकप्रकाश, 7.2 से 5 ११५. लोकप्रकाश, 7.23 ११६. लोकप्रकाश, 8.1 ११७. लोकप्रकाश 8.2 और 13.4 ११८. लोकप्रकाश, 12.215 ११६. लोकप्रकाश, 12.216 १२०. लोकप्रकाश, 8.30 से 32 १२१. लोकप्रकाश, 8.33 से 34 १२२. लोकप्रकाश, 8.35 से 38 १२३. लोकप्रकाश, 8.39 और 40 १२४. लोकप्रकाश, 8.41 और 42 १२५. लोकप्रकाश, 8.43 और 44 १२६. लोकप्रकाश, 8.45 और 46 १२७. लोकप्रकाश, 8.47 से 49 १२८. लोकप्रकाश 12.250 १२६. लोकप्रकाश, 8.57 १३०. लोकप्रकाश, 8.58 १३१. "वैमानिका द्विधा कल्पातीतकल्पोपपन्नकाः । कल्पोत्पन्ना द्वादशधा तेत्वमी देवलोकजाः।।-लोकप्रकाश, 8.59
SR No.022332
Book TitleLokprakash Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemlata Jain
PublisherL D Institute of Indology
Publication Year2014
Total Pages422
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size36 MB
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