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________________ 76 क्र. सं. 9 २ ३ ४ ५ बादर एकेन्द्रियों के अधोलोक क्षेत्र नाम | पृथ्वीकायिक जीव अकायिक जीव वायुकायिक जीव वनस्पतिकायिक जीव अग्निकायिक जीव बादर एकेन्द्रिय जीवों के स्थान ऊर्ध्वलोक क्षेत्र रत्नप्रभादि सात और ईषत्प्राग्भारा नामक पृथ्वी, पातालकलश, | असुरादि भवन और नारकों में इनका स्थान है। घनोदधि और उनके सात वलयों में इनके स्थान हैं। सात घनवायु, सात तनुवायु तथा उनके लोकप्रकाश का समीक्षात्मक अध्ययन वलय, पातालकुम्भ, भवनों के छिद्र, निष्कुट में ये जीव रहते हैं। विमानों के प्रस्तरों में पर्वत, द्वीप और समुद्र स्थान है। में इसके स्थान हैं। विमान और स्वर्ग की पुष्करणी में इनके स्थान हैं। | तिर्यक्लोक क्षेत्र सभी विमान, इनकी श्रेणियां, प्रस्तट, छिद्र निष्कुट स्थानों में ये जीव रहते हैं। शाश्वत और अशाश्वत सभी प्रकार के जलाशयों में ये जीव रहते हैं। | दिशा-विदिशा और गृहोद्यान वायुकायिकों के स्थान हैं। | अप्कायिकों के स्थान वनस्पतिकायिक जीवों के भी स्थान होते हैं। | क्योंकि जल वनस्पति की उत्पत्ति का एक प्रमुख कारण है। विज्ञान भी इस तथ्य को स्वीकार करता है और जैन आगम ग्रन्थों में भी इसके प्रमाण मिलते हैं। अधोलोक और ऊर्ध्वलोक में अग्निकाय जीवों का अस्तित्व ही नहीं है। यह मात्र तिर्यग्लोक के भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में शाश्वत और अशाश्वत रूप से रहते हैं। कर्मभूमि के भरत एवं ऐरवत क्षेत्र में और अकर्मभूमि तथा अन्तरद्वीपों में निश्चित काल में ये जीव रहते हैं जबकि कर्मभूमि के ही विदेह क्षेत्र में ये जीव सदैव रहते हैं। अधोलोक की सातों पृथ्वियाँ ( रत्नप्रभा, शर्कराप्रभा, बालुकाप्रभा, पंकप्रभा, धूमप्रभा, तमः प्रभा और तमस्तम प्रभा) तीन-तीन वातवलयों के आधार पर ठहरी हुई है - घनोदधिवलय, घनवातवलय और तनुवातवलय । ये तीनों वातवलय आकाश पर प्रतिष्ठित होते हैं। * रत्नप्रभा पृथ्वी १४८
SR No.022332
Book TitleLokprakash Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemlata Jain
PublisherL D Institute of Indology
Publication Year2014
Total Pages422
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size36 MB
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