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________________ सरागी सरागी स्थित, वत् २८४ नवतत्त्वसंग्रहः (११२) अथ ३६ द्वार यंत्रमे वर्णन करीये है१ प्रज्ञापन १ पुलाक २ बकुश | ३ प्रतिसेवना | ४ कषाय- | निर्ग्रन्थ | स्नातक कुशील २ वेद पुरुष, नपुंसक, । स्त्री, पुरुष, | बकुशवत् बकुशवत् उपशांतवेद, क्षीणकृत्रिम पिण नपुंसक अथवा | क्षीणवेद | वेद जन्मनपुंसक कृत्रिम क्षीणवेद उपनही इति वृत्तौ शांतवेदे भवेत् ३राग सरागी सरागी उपशांत | क्षीण क्षीण ४कल्प स्थित, अस्थित, बकुशवत् स्थित, अस्थित, स्थित, | निर्ग्रन्थअस्थित, जिनकल्प, जिनकल्प, अस्थित, स्थविर 'स्थविर स्थिवर, कल्पातीत कल्पातीत ५ चारित्र सामायिक, सामायिक, | सामायिक, आद्य चार | यथाख्यात| यथाछेदोपस्था- छेदोपस्थाप- | छेदोपस्थाप ख्यात पनीय ६ प्रति- मूल गुण, उत्तर गुण पुलाकवत् | अप्रतिसेवी | अप्रतिसेवी| अप्रतिसेवना उत्तर गुण सेवी ७ज्ञान २ वा ३ प्रवचन, | २ वा ३ प्रव- | बकुशवत् २ वा ३ वा । कषाय- केवल प्रवचन ज० ८, उ० | चन, ज०८, ४ प्रवचन, | कुशीलवत् नवमे पूर्वकी | उ० १० पूर्व ज०८, उ० व्यति३ वस्तु १४ पूर्व रिक्त तीर्थमे तीर्थमे तीर्थमे कषाय- कषायकु अतीर्थमे वा | कुशीलवत् शीलवत् ९ लिंग | द्रव्ये ३ भावे स्वलिंग १० शरीर | ___३ औ, तै, | ४ औ, वै, । ४ औ, वै, | पांच |३ औ, तै, | ३ औ, तै, का | तै, का | का | तै, का ११ क्षेत्र | जन्म कर्मभूमि | जन्म कर्म० | व | म संहरण नही | संहरण कर्मभू० अकर्म० भू १. क्षीणवेदमां अथवा उपशांतवेदमां होय । नीय नीय ८ तीर्थ तीर्थमे
SR No.022331
Book TitleNavtattva Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri, Sanyamkirtivijay
PublisherSamyagyan Pracharak Samiti
Publication Year2013
Total Pages546
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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