SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 313
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २७८ नवतत्त्वसंग्रहः भद्रा मोक्ष क्ष लक्ष लक्ष लक्ष वर्ष माता नाम सुभद्रा सुप्रभा | सुदर्शना | विजया | वैजयंती जयंती अपरा- रोहिणी जिता गति → ब्रह्मलोक आयु | ८५ | ७५ । ६५ । ५५ । १७ । ८५. | ६५ | १५ | १२ सो लाख हजार | हजार वर्ष वर्ष वर्ष । वर्ष वर्ष तीर्थंकरके वारे श्रेयांस विमल-| अनंत-धर्मनाथ| १८१९ ॥षा रारा १८११ २०२१। नामपूज्य | नाथ | नाथ के अंतरे | के अंतरे | के अंतरे| नाथ वर्ण | सुवर्ण | - | - | → | ए | व | म् | - | → इति नवतत्त्वसंग्रहे पुण्यतत्त्वं तृतीया(य) संपूर्णम्. वर्ष वर्ष | वासु अथ 'पाप'तत्त्व लिख्यते-प्राणातिपात १, मृषावाद २, अदत्तादान ३, मैथुन ४, परिग्रह ५, क्रोध ६, मान ७, माया ८, लोभ ९, राग १०, द्वेष ११, कलह १२, अभ्याख्यान १३, पैशुन्य १४, परापवाद १५, रतिअरति १६, मायामृषा १७, मिथ्यादर्शनशल्य १८ इनसे पापका बंध होइ. ८२ प्रकारे पाप भोगवे—ज्ञानावरणीय ५, दर्शनावरणीय ९, असातावेदनीय १, मोहनीय २६, नरक-आयु १, नरक-तिर्यंच-गति २, जाति ४, संहनन ५, संस्थान ५, अशुभ वर्ण आदि ४, नरक-तिर्यंच-आनुपूर्वी २, अशुभ विहायोगति १, उपघात १, स्थावरदशक १०, नीच गोत्र १, अंतराय ५, एवं सर्व ८२ प्रकारे भोगवे. इति नवतत्त्वसंग्रहे पापतत्त्वं चतुर्थं सम्पूर्णम्. अथ ‘आश्रव' तत्त्व लिख्यते २५ क्रियाओ-(१) काइया—कायाव्यापर करी नीपनी ते 'कायिकी'. (२) अहिगरणीया-जिस करी जीव नरक आदिकनो अधिकारी होय ते 'अधिकरण', ते मूंडा अनुष्ठान अथवा खड्ग आदि तिहां उपनी ते 'अधिकारणिकी'. (३) पाउसिया-मत्सरभावे नीपनी ते 'प्राद्वेषिकी'. (४) परियावणिया-आपकू अथवा परकू परितापना करता 'पारितापनिकी. (५) पाणाइवातिया-अपणा अथवा परना प्राण हरता 'प्राणातिपात' क्रिया. (६) आरंभिया-जीवने वा जीवना कलेवरने तथा पीठीमय जीवना आकारने अथवा वस्त्र आदिकने आरंभतां-मर्दतां आरंभिकी'. (७) परिग्गहिया-जीवका अने अजीवका परिग्रह करता 'पारिग्रहिकी'. (८) मायावत्तियामाया तेह ज प्रत्यय-कारण है कर्मबंधनो ते 'मायाप्रत्ययिकी'. (९) मिच्छादसणवत्तिया–हीन
SR No.022331
Book TitleNavtattva Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri, Sanyamkirtivijay
PublisherSamyagyan Pracharak Samiti
Publication Year2013
Total Pages546
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy