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________________ २३२ नवतत्त्वसंग्रहः चौवीसी. तेराने बंधे पांच आदि देइ आठ लगे. चार उदयना ठाम हुइ ५ ६ ७ ८ प्रथम ५ ते किम ? प्रत्याख्यान १, संज्वलन १, वेद १, एक कोइ युगल, ए पांचने उदय पाछली परे एक चौवीसी १, ए पांच माहे भय घाले ६ ने उदय एक चौवीसी १, भय काढी जुगुप्सा घाले ६ ने उदय पाछली तरे एक चौवीसी १, ए दूजी चौवीसी २, जुगुप्सा काढी वेदकसुं त्रीजी चौवीसी ३. प्रत्या० १, संज्व० १, एक 'केहु वेद १, एक कोइ युगल २, भय १, जुगुप्सा, एवं ७ ने उदय एक चौवीसी, अथव सा काढी भय वेदसुं सातने उदय दूजी चौवीसी, भय काढी जुगुप्साने वेदकसुं सातने उदय तीजी चौवीसी ३, प्रत्या० १, संज्व० १, एक कोइ वेद १, एक कोइ युगल २, भय १, जुगुप्सा १, वेदक १, एवं आठने उदय पूर्ववत् एक चौवीसी १. नवने बंधे प्रमत्त १, अप्रमत्त १, अपूर्वकरण १ ए तीन गुणस्थानमे नवने बंधे चार आदि ४।५।६।७ ए उदयस्थान. प्रथम चारका किम ? संज्वलन एक कोइ १, एक कोइ वेद १, एक कोइ युगल २, ए चार प्रकृतिना उदय क्षायिक वा उपशम सम्यक्त्वना धणीने प्रमत्त आदि चार गुणस्थानना धणीने हुइ. एवं नवने बंधे चारने उदय पूर्ववत् एक चौवीसी, ए चार माहे भय घाले, एवं पांचने उदय पूर्ववत् एक चउवीसी, भय काढी जुगुप्सा घाले पांचने उदय दूजी चौवीसी, जुगुप्सा काढी वेदकसुं पांचने उदय त्रीजी चौवीसी ३, संज्च० १, वेद एक १, युगल एक केहु २, एह चारमे भय, जुगुप्सा घाले छने उदय एक चौवीसी १, अथवा जुगुप्सा काढी भय १ वेदकसुं दूजी चौवीसी २, भय काढी जुगुप्सा वेदकसुं छने उदय तीजी चौवीसी ३. संज्व० १, एक केहु वेद १, एक युगल २, भय १, जुगुप्सा १, वेदक १, एवं सातने उदय एक चौवीसी. पांचने बंधे दो उदयना स्थान ते किम ? संज्वलन १, एक कोइ वेद १, एदोने उदय त्रिण वेद ३, क्रोध १, मान १, माया १, लोभ १ से चार गुणा कीजे तो बारं भंग होई. हिवै पांचने बंधे संपूर्णं. चारनुं बंध १, तीननो बंध, दोनो बंध, एकनो बंध. ए चारोमे एकेक प्रकृतिन (उ) उदय ते किम ? पांचना बंधमेसूं पुरुषवेद विच्छेद कीधे चार रहै, ते चारने बंधकाले एक को संज्वलननो उदय इहां चार भांगा उपजे ते किम ? कोइ क्रोधने उदय श्रेणि पडिवज्जे, एवं मान १, माया १, लोभ १. इहां कोइ एक आचार्यने मते इम कह्यो ४ बांधवाने काले एक कोइ वेदनी इच्छा करे तेह भणी तेहने मते बांधवाने पहिले समये चार त्रिक बारां भंग उपजे, तेह भणी तेहने मते २४ भंग हूइ ते किम ? बारा भंगा पांचना बंधना, बारा एहना मतना, एवं २४ चौवीसी सर्व ४१. संज्वलना क्रोध छेदे तीनका बंध, क्रोध टाली एक कोइनो उदय जो संज्वलना क्रोधनउ उदय तु संज्वलना क्रोधनो बंध हुइ. "जो बंधइ सो वेध (द ?) इ" इति वचनात्. संज्वलना मान छेदे दोनो उदय, मान टाली एक कोइनो उदय. माया छेदे लोभनो बंध, लोभनो उदय. संज्वलना क्रोध थकी ४ भंग, मानसे ३, मायासे २ भंग, लोभसे एक भंग, एवं भंग ११. पिछली ४१ चौवीसी अने ह ग्यारा, सर्व एकत्र कीया ९९५ भंग मोहोदयके है. १. कोइ । २. यो बध्नाति स वेदयति ।
SR No.022331
Book TitleNavtattva Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri, Sanyamkirtivijay
PublisherSamyagyan Pracharak Samiti
Publication Year2013
Total Pages546
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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