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________________ नवतत्त्वसंग्रहः ४९ | दर्शनउदयस्थान | : 14141414141 र्शनउदयस्थान 3 30 ४ । ४ । ४ ४ ४ ४ । ४ । ४ | ४ | ४ | ० चारका उदयस्थान होवे तो चक्षु आदि ४. जो पांचका उदयस्थान होवे तो तिहां निद्रा एक कोइ जिसका जिस गुणस्थानमे उदय है सो प्रक्षेपीये तो पांचका उदयस्थान. ४२ दर्शनसत्ता स्थान ३ मिथ्यात्वसे लेकर उपशान्तमोह लगे नवकी सत्तानो एक स्थान. उपशमश्रेणि अपेक्षा अने क्षपकश्रेणि आश्री नवमे गुणस्थानके प्रथम भाग लगे नवनी सत्ता. नवमेके दूजे भागथी प्रारंभी बारमेके छेहले दो समय लगे स्त्यानधि त्रिक क्षये ६ नी सत्तास्थान. बारमेके छेहले समय दो निद्रा क्षये ४ का सत्तास्थान ज्ञातव्यम्. व 4 व व 4 ४३/ वेदनीयके | साता वा बंधस्थान १ | असाता | व प प . . . al. 1. वं | वं वं| ता| वं | वं| वेदनीयका बंधस्थान १-साता वा असाता. आपसमे विपर्ये(र्यय) है. इस वास्ते बंधस्थान १ जानना. ४४ व व वेदनीयका | साता वा | व 4 4 4 4 d 4 प प . . . . . . . | उदयस्थान १] असाता | वं al. . ol. ol. वेदनीयका उदयस्थान १-साता वा असाता. दोनो(का) समकालमे उदय नही, इस वास्ते एक स्थान. वेदनीयके | १ वा | १ | १ | सत्तास्थान २ | २ वा वा | वा | वा| वा वा | वा | वा | वा | वा वा वा वा २ | २ | २ | २ | २ | २ | २ | २ | २ | २ | २ |२ | २ वेदनीयके सत्तास्थान २ साता वा असाता. जो साता क्षय कीनी होइ तो असाताकी सत्ता, असाता क्षय करी होइ तो साताकी सत्ता, इस वास्ते दो सत्तास्थान ज्ञेयम्. ४६ | मोहके बंध स्थान १० or or ० 39 mro
SR No.022331
Book TitleNavtattva Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri, Sanyamkirtivijay
PublisherSamyagyan Pracharak Samiti
Publication Year2013
Total Pages546
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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