SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 175
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १४० नवतत्त्वसंग्रहः तिसमे एक भेले 'उत्कृष्ट युक्त असंख्याते' होय. उत्कृष्ट युक्त असंख्यातेमे एक मेलीये तब 'जघन्य असंख्यात असंख्याते' होय. इसका अन्योन्य अभ्यास कीजे. तिणमेसु दोय निकासिये तहां ताइ 'मध्यम असंख्यात असंख्याते' होय. उसमे एक भेले तब 'उत्कृष्ट असंख्यात असंख्याते' होते है. 'मत्यंतरे च___ अनेरा आचार्य वली 'उत्कृष्ट असंख्यात असंख्यातानो स्वरूप इम कहे है यथा जघन्य असंख्यात असंख्यातानी राशिनो वर्ग करीये, पछे ते वर्गित राशिना वली वर्ग करीये, पछे वली वर्गराशिना वर्ग करीये. इम तीन वार करके तिसमे दस बोल असंख्यातांके भेलीये. ते कौनसे? (१) लोकाकाशना प्रदेश, (२) धर्मास्तिकायना प्रदेश, (३) अधर्मास्तिकायना प्रदेश, (४) एक जीवना प्रदेश, (५) सूक्ष्म बादर अनंतकाय वनस्पतिना औदारिक शरीर, (६) अनंतकायना शरीर वर्जीने शेष पृथ्वीकाय, अप्काय, तेजस्काय, वायुकाय, प्रत्येक वनस्पतिकाय अने त्रसकाय इन सबके शरीर, (७) स्थितिबंधना कारणभूत अध्यवसाय ते पिण असंख्याता, (८) अनुभागबंधके अध्यवसाय, (९) योगच्छेद प्रतिभाग, (१०) उत्सर्पिणी अवसर्पिणीरूप कालना समय. एवं १० बोल पूर्वोक्त त्रिवर्गित राशिमे प्रक्षेपके फेर सर्व राशि तीन वार वर्ग करीये, जे राशि हूये तिसमेसु एक काढ्या 'उत्कृष्ट असंख्यात असंख्याता' होय. (६१) मध्यम असंख्यात असंख्यातमे जे पदार्थ है तिनका यंत्रम्द्रव्यथी १ | बादर पर्याप्त तेजस्कायसे लगाय के सर्व निगोदके शरीरपर्यंत ए सर्व मध्यम असंख्यात असंख्याते. क्षेत्रथी २ | सूक्ष्म अपर्याप्त जीवके तीसरे समेकी अवगाहना जितने क्षेत्रमे होवे तहांसे लगाय परम अवधिज्ञानका क्षेत्र ए मध्यम असंख्यात असंख्याते जानने. इहां प्रदेशा आश्री जानना. कालथी ३ | सूक्ष्म उद्धार पल्योपमके समयथी लगाय ४ स्थावर वनस्पति विनाकी कायस्थिति के समय ए सर्व मध्यम असंख्य असंख्य जानने. भावथी ४ । सूक्ष्म निगोदके जीवके योगस्थानसूं लगाय के संज्ञी पर्याप्तके अनुभाग बंधके अध्यवसायके स्थानक ए सर्व मध्यम असंख्यात असंख्याते. इति नव बोल असंख्याताके जानने. उत्कृष्ट असंख्यात असंख्यातमे एक भेलीये तब 'जघन्य परित्त अनंता' होय. तिसका पूर्ववत् अन्योन्य अभ्यास कीजे. तिसमेसुं दोय निकासिये तहां ताइ 'मध्यम परित्त अनंता' होय. तिसमे एक भेलीये तब 'उत्कृष्ट परित्त अनंता' होय. उत्कृष्ट परित्त अनंतेमे एक भेलीये तब 'जघन्य युक्त अनंता' होय. अभव्य जीव इतने है. तिसका पूर्ववत् अन्योन्य अभ्यास कीजे. तिसमेस दोय निकासिये तहां ताइ 'मध्यम युक्त अनंता' होय. तिसमे एक भेलिये तब 'उत्कृष्ट युक्त अनंता' होय. तिसमे एक भेले 'जघन्य अनंत अनंत' होय. इसथी आगे सर्व 'मध्यम अनंत अनंता' जानना. उत्कृष्ट अनंत अनंता नही. __ अनेरा आचार्य वली इम वखाणे है-जघन्य अनंत अनंता पूर्वली परे तीन बार वर्ग करी १. मतांतर प्रमाणे तो। २. समयनी।
SR No.022331
Book TitleNavtattva Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri, Sanyamkirtivijay
PublisherSamyagyan Pracharak Samiti
Publication Year2013
Total Pages546
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy