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________________ १३६ नवतत्त्वसंग्रहः अथ पाला १ तिसके योजन योजन प्रमाण खंड करणेकी आम्नाय लिख्यते-इहा पाला एक योजन, लक्ष विष्कंभ जंबूद्वीप समान, जिसका भूमिमे अवगाढपणा १००० योजन तिस पालेकी तीन कांड तीनमे प्रथम कांड १००० योजनके अवगाढपणेका, दूजा कांड ८ योजनको जाडपणेका, तीजा कांड २८७४८ योजनकी सिखा, तिसका मूलमे विष्कंभ तथा परिधि जंबूद्वीप समान, उपरि जाके सिखा बंधे तिहा सरसोका दाणा १ उसके उपरि दाणा दूजा नव हरे (रहे ?). (६०) इन तीन कांडका घन खंड यंत्रम्१ संख्या ३ कांड | विष्कंभ | अवगाढ घनयोजन प्रमाण खंड प्रथम कांड | एक लाख | १००० । ७९०५६९४१५० योजन १।। कोस ६॥ हाथ १००० भूमिमे योजन मूल | योजन गुण्या कर्यां ७९०५६९४१५०४३९ योजन १ कोस १६२५ धनुष घनयोजनके खंड हूये. दूजा कांड | एक लाख | ८ ७९०५६९४१५० योजन १॥ कोस ६२॥ हाथ ८ भूमिसे उपरि | योजन मूल | योजन गुणा कर्या ६३२४५५५३२०३ योजन २ कोस वेदका ताइ १२५ धनुष इतने घनयोजन प्रमाण खंड हूये. कांड तीजा | एक लाख | २८७४८ | २७७७७११६१६ योजन परिधिका छट्ठा बांटा तिसका | वेदका से उपरि | योजन मूल | योजन वर्ग होइ इसकू सिखातूं २८७४८ गुणा कर्या सिखा ताइ घनयोजन प्रमाण खंड ७९८५३६५३५३६७६८. अथ इन तीनो कांडाके घन योजन मिलाइये तदा अंक चवदे होय ८७८२२५९३२४०४१० ए समस्त पालेके घनयोजन हूये. एक घनयोजनमे ११८७४७२५५७९९८०८०००,०००,००० सरसों तिस थकी गुणाकार कीजे तब अंक अडतीस आवे. तितने १ पालेमे सरसुं जानने. अंक अग्रे-१०४२८६९१९४४५२१४५५२२८९७५८४१२८ ०००००००००० अंक. अनवस्थित पालेकू असत्कल्पनाथी कोइ उठावै दाणा १ द्वीपमे, दाणा १ समुद्रमे इस तरे जंबूद्वीप आदिकमे प्रक्षेपे करी ठाली होवे तदा एक दाणा अनवस्थितका तो नही ओर दाणा १ शलाका पालामे प्रक्षेपिये. अब 'जहां ताइ दाणे द्वीप समुद्रामे गये है तिण सर्व ही द्वीप समुद्रां प्रमाण पाला कल्पीये. तिणथी आगेके द्वीप समुद्रामे एकेक दाणा प्रक्षेपिये जदा रीता होय तदा १ दाणा शलाकामे फेर प्रक्षेपिये. ऐसेही अनवस्थित पालेके भरणे अने 'रिक्त करनेसे एकेक दाणे करी शलाका भरीये. अने जिहां छेहडला दाणा गया है तितने द्वीप समुद्रां प्रमाण अनवस्थित पाला भरीये, भरके उठाइये नही, किन्तु शलाका पाला उठाइये. उठा करके ते अनवस्थित पल्यांक ते क्षेत्रथी आगे एक एक दाणा अनुक्रमे द्वीप समुद्रने विषे प्रक्षेपीये. जदा तिसका अंत आवै १. ज्यां सुधी । २. खाली।
SR No.022331
Book TitleNavtattva Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayanandsuri, Sanyamkirtivijay
PublisherSamyagyan Pracharak Samiti
Publication Year2013
Total Pages546
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size14 MB
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