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________________ १९ वचन मात्र पण पाळता नथी ॥ ६२॥ एतो निश्चित छे के स्वार्थ वगर कोइ पण स्नेह करतुं नथी. बीजुं तो शुं ? नानुं बाळक पण माताना स्तनोने दूध रहित थवाथी झट छोडी दे छे ॥ ६३ ॥ संसारी माणस दुःखदाताने सुखदाता, विनस्वरने स्थिर अने अनात्मीयने पोतानुं स्वरूप मानीने पापनो संग्रह करे छे, जे घणुं खेदकारक छे ॥ ६४ ॥ संसारी माणस केवा मूर्ख छे के पाप तो पुत्र मित्र अने शरिरने माटे करे छे, परंतु नरकादिकनुं घोर दुःख पोते एकलाज सहन करे छे ॥ ६५ ॥ संसाररूपी समुद्रमां ढूंढीए तो कोइ पण जग्याए सुख देखातुं नथी. जेमके केळना थडने छोलीए तो शुं तेमांथी कोइए सार (गर) नीकळतो जोयो छे ? कदापि नहि. तेज प्रमाणे आ संसार सार रहित छे ॥६६॥ काई पण पोतानी साथै जइ शकतुं नथी, ए प्रमाणे जाणवा छतां पण जेओतेने माटे पापनो आरंभ करे छे, तो एनाथी बोजी वधारे मूर्खता कई हशे ? ॥ ६७॥ इन्द्रियजनित विषयाने भोगववाथी दुःखज थाय छे अने तपादिकमां क्लेश करवाथी सुख थाय छे. ए कारणथी ते सुखनी रक्षाने माटे विद्वान माणसो इन्द्रियजनित सुखने छोडीने तपवरणन करे छे ||६८|| जे विषय ग्रहण करलोज निरंतर महादुःखदायक छे, तो ते विषयो सिवाय बीजो वैरीं कोण छे के जे विषय दुःख दीधा वगर छोडतो नथी. ॥६९॥ जेओ प्रार्थना करवाथी आंवे नहि अने मोकल्या वगर पोतानी मेंळे चाल्या जाय, एवा धन कुटुम्ब घर वगेरे आपणां केवी ते थइ शके ? ॥ ७० ॥ जे संसारमां विश्वास छे, त्यांतो भय छे अने जे मोक्षमां विश्वास नथी त्यां सदा श्रेष्ठ सुख छे ॥ ७१ ॥ जे जीव पोताना आत्मकल्याणने छोडीने पोताथी भिन्न आ देहना कार्यमां लागेला छे, तेओ पारकाना दास छे; तेनाथी वधारे निन्द्य बीजो कोइ नथी ॥ ७२ ॥ जे अनेक भवन पवित्र सुख हरी ले छे, ते पुत्रादिक कुटुंबी माणसोथी अधिक केम
SR No.022328
Book TitleDharmpariksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIshwarlal Karsandas Kapadia
PublisherMulchand Karsandas Kapadia
Publication Year1910
Total Pages244
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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