SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 133
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ढीने तेनी साथे वारंवार रमवा लाग्यो अने रमी रह्या पछी जती रहवाना डरथी पाछी पोताना पेटमा राखवा लाग्यो ॥ ७० ॥ आ प्रमाणे यमराज तेनी साथे रतामृत भोगवतां भोगवतां पोतानो समय सुखथी गाळतो पोताने इन्द्रयी पण अधिक मानवा लाग्यो ॥ ७१ ॥ एवो रिवाजज छे के, कलम, पुस्तक अने स्त्री पारके हाथ गयली पाछी आवती नथी. कदाच आवे छे तो टुटी फूटी वापरेली मळे छे ॥ ७२ ॥ एक समये पवनदेवे अग्निदेवने कह्यु के हे भाई! देवोमां तो आजकाल एक यमराजज पोतानो काळ सुखथी गाळे छे, केमके तेणे रतामृतनी नदी समान एक मनोहर स्त्री मेळवी छे, माटे तेने द्रढालिंगन करीने सुखरुपी सागरमां मग्न थइने सूवे छे! ॥ ७३-७४ ॥ ते नितम्बिनीना आपेला पवित्र सुखमां गंगाना जलथी समुद्रना. समान यमराज कदी तृप्तन थतां नथी ॥ ७५ ॥ आ सांभळीने अग्निदेवे कह्यु, ते तेनी साथे मारो मेळाप केवी रीते थाय? त्यारे पवनदेवे कह्यु के, ॥ ७६ ॥ यमराजनी रक्षामा रहेली ते स्त्री जोवाने पण मळती नथी तो तेनो मेळाप केवी रीते थई शके? ॥ ७७ ॥ केमके ते स्त्री पोतानी शोभाथी सघळी देवांगनाओने जीतवावाळी छे, माटे यमराज रतामृत भोगव्या पछी तेने पोताना पेटमा राखी लेछे ॥७८॥ परंतु जे वखते यमराज नित्यकर्म करे छे ते वखते तेने एक पहोर सूधी पेटमाथी बहार काढीने राखे छे, ते वखते बेशक ते एकलीज जोवामां आवे छे ॥ ७९ ॥ त्यारे अग्निदेवे कह्यु के, हे वायु ! एक पहोरमां तो हुं त्रण लोकमांथी कोई पण स्त्रीने ग्रहण करी शकुंछु, तो एकांतमां बेठेलीनी घातज शुं छे? ॥ ८० ॥ आचार्य कहे छे के, यौवनथी भूषित छ अंग जेनुं अने कामथी व्यापित छे शरिररुपी यष्टि जेनी, एवी
SR No.022328
Book TitleDharmpariksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIshwarlal Karsandas Kapadia
PublisherMulchand Karsandas Kapadia
Publication Year1910
Total Pages244
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy