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________________ दिवस थवा वा त्रण भवनमा प्रसिध्ध जांबव नामनो पुत्र जण्यो ॥ ५९॥ आ प्रमाणे जे ब्रह्मा कामातचित्त थइने त्तिर्यंचने पण सेवन करे छे ते मूढ आ सुंदर कन्याने केम छोडशे? ॥६० ॥ तथा गौतमरुषिनी स्त्री अहल्याने कामने बेलासमान सांभळीने जे वखते परस्त्रीलंपट इन्द्र विह्वल थइ गया ॥ ६१ ॥ त्यारे गौतमरुषीए क्रोध करीने श्राप दीधो तथा ते इन्द्र शस्त्रभग थई गया. ते ठीकज छे,-मन्मथना आज्ञाकारी एवा कोण पुरुष छे के जे दुःखने प्राप्त थता नथी? ॥६२॥ ज्यारे देवोए बहु प्रार्थना करी के हे मुनि! कृपा करो ( माफ करो ) त्यारे ते अनुग्रहकारी मुनिए इन्द्रने सहस्त्राक्ष ( हजार नेत्रवाला ) बनावी दीधा. ६३ ॥ आ प्रमाणे काम अथवा मोह तथा मृत्युद्वारा पीडीत न होय, एवा दोष रहित देव आ लोकमां कोई पण देखता नथी. परंतु एक यमराज देव छे जे वास्तवमा सत्यता अने पवित्रतामां परायण, पोताना विपक्षने मर्दन करवामां धीर अने समयवर्ति छे ॥६४-६५ ॥ माटे तेनजि पासे आ कन्याने जq जोईए, एवो विचार करीने छाया नामनी पोतानी कन्याने यमराजनी पासे राखी ने ते मंडपकौशिक पोतानी स्त्री सहित तीर्थयात्रा चाल्यो गयो, ते ठीकज छे के पंडित माणस निराकुल होवाथीज धर्मकायमा प्रवृति करे छे ॥ ६६-६७॥ तेना चाल्या गया पछी यमराजे ते छायाने कामरुपी वृक्ष ने माटे पृथ्वी समान जोईने तेज वखते पोतानी स्त्री वनावी लीधी. केमके दुनियामां एवा कोई पण नहि हशे के, जेओ स्त्रिओमां लबलिन न होय ॥ ६८ ॥ यमराजे ते छायाने जती रहवाना डरथी पोताना पेटमां छुपावी राखी. ते उचितज छे,-कुबुद्धि कामीजन पोतानी प्रिय स्त्रीने क्यां नथी राखता नथी ॥ ६९ ॥ ते पछी ते यमराज ते छायाने पेटमाथी काढी का
SR No.022328
Book TitleDharmpariksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorIshwarlal Karsandas Kapadia
PublisherMulchand Karsandas Kapadia
Publication Year1910
Total Pages244
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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