SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 40
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ एकेन्द्रिय स्वकाय शस्त्र, परकाय शस्त्र तथा उभयकाय शस्त्र भी कहे गये हैं। जो बादर एकेन्द्रिय जीव स्वयोग्य पर्याप्तियाँ पूर्ण किये बिना ही मरते है, वे अपर्याप्त बादर एकेन्द्रिय कहलाते हैं। ४. पर्याप्त बादर एकेन्द्रिय : जो बादर एकेन्द्रिय जीव स्वयोग्य पर्याप्तियाँ पूर्ण करने के बाद मरते हैं, वे पर्याप्त बादर एकेन्द्रिय कहलाते हैं। ५. अपर्याप्त द्वीन्द्रिय : जिन जीवों के स्पर्शनेन्द्रिय तथा रसनेन्द्रिय, ये दो इन्द्रियाँ होती है, वे द्वीन्द्रिय जीव कहलाते हैं। एकेन्द्रिय को छोडकर सभी जीव केवल बादर नाम कर्म वाले ही होते हैं । शंख, कौड़ी, सीप, कृमि, केंचुआ आदि जीव द्वीन्द्रिय कहलाते है । वे द्वीन्द्रिय जीव जो स्वयोग्य पर्याप्तियाँ पूर्ण किये बिना ही मरण को प्राप्त हो जाते हैं तो उन्हें अपर्याप्त द्वीन्द्रिय कहा जाता ६. पर्याप्त द्वीन्द्रिय : जो द्वीन्द्रिय जीव स्वयोग्य पर्याप्तियाँ पूर्ण करके मरते हैं, उन्हें पर्याप्त द्वीन्द्रिय कहा जाता है । ७. अपर्याप्त त्रीन्द्रिय : जिन जीवों के स्पर्श, रस तथा घ्राण, ये तीन इन्द्रियाँ होती है, वे मकोडा, जूं, दीमक, इयल, कीडी, इन्द्रगोप आदि जीव त्रीन्द्रिय कहलाते हैं । वे जीव जो स्वयोग्य पर्याप्तियाँ पूर्ण किये बिना मरते हैं, वे अपर्याप्त त्रीन्द्रिय कहलाते हैं। .. ८. पर्याप्त त्रीन्द्रिय : जो त्रीन्द्रिय जीव स्वयोग्य पर्याप्तियों को पूर्ण करके मरते हैं, वे जीव पर्याप्त त्रीन्द्रिय कहलाते हैं । ९. अपर्याप्त चतुरिन्द्रिय : जिन जीवों के स्पर्श, रस, घ्राण और चक्षु, ये चार इन्द्रियाँ होती है, उन्हें चतुरिन्द्रिय कहा जाता है । भ्रमर, बिच्छु, टिड्डी, मच्छर, मक्खी, कंसारी, सितली आदि जीव चतुरिन्द्रिय हैं । वे चतुरिन्द्रिय जीव जो स्वयोग्य पर्याप्तियाँ पूर्ण किये बिना ही मरते हैं, वे अपर्याप्त चतुरिन्द्रिय कहलाते हैं। १०. पर्याप्त चतुरिन्द्रिय : जो चतुरिन्द्रिय जीव स्वयोग्य पर्याप्तियाँ पूर्ण करके मरते हैं, उन्हें पर्याप्त चतुरिन्द्रिय कहा जाता है। ११. अपर्याप्त असंज्ञी पंचेन्द्रिय : जिन जीवों के स्पर्श, रस, घ्राण, चक्षु और श्रोत्र, ये पांच इन्द्रियाँ होती है, उन्हें पंचेन्द्रिय कहा जाता है। माता-पिता -- - श्री नवतत्त्व प्रकरण
SR No.022327
Book TitleNavtattva Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNilanjanashreeji
PublisherRatanmalashree Prakashan
Publication Year
Total Pages400
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy