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________________ भावार्थ सूक्ष्म और इतर अर्थात् बादर एकेन्द्रिय और द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, संज्ञी तथा असंज्ञी पंचेन्द्रिय अनुक्रम से पर्याप्त तथा अपर्याप्त, (ऐसे) जीव के चौदह स्थानक है ॥४॥ १. अपर्याप्त सूक्ष्म एकेन्द्रिय : जिन जीवों के केवल एक स्पर्शनेन्द्रिय (त्वचा) ही होती है, उन्हें एकेन्द्रिय कहते हैं। इन जीवों के अनेक शरीर एकत्रित होने पर भी चक्षु से दृष्टिगोचर नहीं होते, स्पर्श से भी नहीं जाने जाते, अतः इन्हें सूक्ष्म एकेन्द्रिय जीव कहा जाता है। ऐसे सूक्ष्म एकेन्द्रिय जीव संपूर्ण लोकाकाश में सर्वत्र व्याप्त है । ऐसी कोई जगह नहीं है, जहा सूक्ष्म एकेन्द्रिय जीव न हो । ये जीव शस्त्रादि के द्वारा कटते नहीं, अग्नि से जलते नहीं, मनुष्य को किसी भी इन्द्रिय के द्वारा ग्रहण होते नहीं, न मनुष्य के उपयोग में आते हैं । सूक्ष्म नाम कर्म का उदय होने से ये जीव सूक्ष्म शरीर प्राप्त करते हैं, जो अदृश्य ही रहता है। इनकी हिंसा मन के अशुभ योग से ही संभव है, वचन, काया से इनकी हिंसा असंभव है । ये सूक्ष्म एकेन्द्रिय जीव पृथ्वी, अप्, तेउ, वायु तथा वनस्पति रुप पांच प्रकार के हैं। ___जो जीव स्वयोग्य पर्याप्तियों को पूर्ण किये बिना ही मृत्यु को प्राप्त कर लेता है, वह अपर्याप्त कहलाता है। सूक्ष्म एकेन्द्रिय जीव जब स्वयोग्य पर्याप्तियों को पूर्ण किये बिना ही मर जाते हैं, तब इन्हें अपर्याप्त सूक्ष्म एकेन्द्रिय कहा जाता २. पर्याप्त सूक्ष्म एकेन्द्रिय : जो सूक्ष्म एकेन्द्रिय जीव स्वयोग्य पर्याप्तियाँ पूर्ण करने के बाद मरते हैं, उन्हें पर्याप्त सूक्ष्म एकेन्द्रिय कहा जाता है । ३. अपर्याप्त बादर एकेन्द्रिय : जिस कर्म के उदय से बादर अर्थात् स्थूल शरीर प्राप्त हो, ऐसे बादर नामकर्म वाले पृथ्वी, अप्, तेउ, वायु तथा वनस्पतिकाय के जीव बादर एकेन्द्रिय कहलाते हैं । ये बादर एकेन्द्रिय जीव शस्त्रादि से छेदेभेदे जा सकते हैं, अग्नि से जलाये जा सकते हैं, मनुष्यादि के भोग-उपभोग में सहायक बनते हैं । ये जीव सम्पूर्ण लोकाकाश में नहीं मात्र नियत भाग में ही व्याप्त है । पृथ्वीकायादि के जीव एक दूसरे का परस्पर हनन भी करते हैं तथा स्वकायिक जीव स्वकायिक जीवों का भी हनन करते हैं । अतः बादर ३६ श्री नवतत्त्व प्रकरण
SR No.022327
Book TitleNavtattva Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNilanjanashreeji
PublisherRatanmalashree Prakashan
Publication Year
Total Pages400
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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