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________________ ११३५) अंतराय कर्म का बंध किन कारणों से होता है ? उत्तर : पांच कारणों से - (१) दान, (२) लाभ, (३) भोग, (४) उपभोग, (५) वीर्य-शक्ति में अंतराय डालने से । ११३६) अंतराय कर्म की उत्कृष्ट एवं जघन्य स्थिति कितनी ? उत्तर : उत्कृष्ट ३० कोडाकोडी सागरोपम तथा जघन्य एक अंतर्मुहूर्त । ११३७) अंतराय कर्म का उत्कृष्ट तथा जघन्य अबाधाकाल कितना? उत्तर : उत्कृष्ट तीन हजार वर्ष तथा जघन्य एक अंतर्मुहूर्त । ११३८) अंतराय कर्म का क्षय होने पर आत्मा में कौनसा गुण प्रकट होता है ? उत्तर : अनंतवीर्य । ११३९) किस कर्म का अबाधाकाल अनियमित है ? उत्तर : आयुष्य कर्म का। ११४०) आयुष्य कर्म के अबाधाकाल के कितने विकल्प है ? उत्तर : चार - (१) जघन्य स्थिति में जघन्य अबाधाकाल । (२) जघन्य स्थिति में उत्कृष्ट अबाधाकाल । (३) उत्कृष्ट स्थिति में जघन्य अबाधाकाल । (४) उत्कृष्ट स्थिति में उत्कृष्ट अबाधा काल । ११४१) बंध, उदय, उदीरणा व सत्ता में कर्म की कितनी प्रकृतियाँ होती है ? उत्तर : बंध में १२०, उदय-उदीरणा में - १२२, तथा सत्ता में १४८/१५८ प्रकृतियाँ होती है। ११४२) बंध, उदय, उदीरणा, सत्ता योग्य प्रकृतियाँ कौन-कौन सी है ? उत्तर : (१) बंध योग्य १२० प्रकृतियाँ - ज्ञानावरणीय - ५, दर्शनावरणीय - ९, वेदनीय - २, मोहनीय - २६, आयु - ४, नाम - ६७, गोत्र - २, अंतराय - ५ (२) उदय-उदीरणा योग्य प्रकृतियाँ - १२२ - बंधयोग्य १२० तथा सम्यक्त्व मोहनीय व मिश्र मोहनीय ये २ प्रकृतियाँ मोहनीय कर्म में अधिक जोडने पर मोहनीय कर्म की २८ होती हैं, अतः १२२ उदयउदीरणा योग्य है। - - - - - - - - - - - - - - ३५६ श्री नवतत्त्व प्रकरण
SR No.022327
Book TitleNavtattva Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNilanjanashreeji
PublisherRatanmalashree Prakashan
Publication Year
Total Pages400
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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