SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 280
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उत्तर: प्राद्वेषिकी क्रिया के दो भेद है - (१) जीव प्राद्वेषिकी क्रिया - जीव पर द्वेष भाव रखना । (२) अजीव प्राद्वेषिकी क्रिया हानि पहुँचाने वाले अजीव पर द्वेषभाव रखना । ६९०) पारितापनिकी क्रिया किसे कहते है ? उत्तर : दूसरे जीवों को पीडा पहुँचाने से तथा अपने ही हाथ से अपना सिर छाती आदि पीटने से लगने वाली क्रिया पारितापनिकी क्रिया है । ६९१ ) पारितापनिकी क्रिया के भेद लिखो । उत्तर : पारितापनिकी क्रिया के दो भेद है - (१) स्वहस्त पारितापनिकी क्रिया - स्वजनादि के वियोग से अपने हाथों से सिर कूटना, छाती पीटना आदि । (२) परहस्त पारितापनिकी क्रिया - दूसरों के हाथों से परिताप करवाना। ६९२) प्राणातिपातिकी क्रिया किसे कहते है ? उत्तर : दूसरे प्राणियों के प्राणों का विनाश करने से तथा स्त्री आदि के वियोग में आत्मघात करने से लगने वाली क्रिया प्राणातिपातिकी है 1 ६९३) प्राणातिपातिकी क्रिया के भेद लिखो । उत्तर : प्राणातिपातिकी क्रिया के दो भेद हैं - (१) स्वहस्तिकी प्राणातिपातिकी क्रिया - स्वहस्त से जानबूझ कर जीवों का अतिपात - नाश करना (२) परहस्तिकी प्राणातिपातिकी क्रिया अतिपात - नाश करवाना | ६९५ ) आरंभिकी क्रिया के भेद लिखो । उत्तर : आरंभिकी क्रिया के दो भेद हैं। - श्री नवतत्त्व प्रकरण - परहस्त से जीवों का ६९४) आरंभिकी क्रिया किसे कहते है ? उत्तर : आरंभ (खेती, घर आदि के कार्य में हल, कुदाल आदि चलाने) से लगने वाली क्रिया आरंभिकी क्रिया है। इसमें उद्देश्यपूर्वक जीव का हनन नहीं किया जाता । २७७
SR No.022327
Book TitleNavtattva Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNilanjanashreeji
PublisherRatanmalashree Prakashan
Publication Year
Total Pages400
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy