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________________ ६३६ ) दौर्भाग्य नामकर्म किसे कहते है ? उत्तर : जिस कर्मोदय से जीव को देखते ही उद्वेग पैदा हो, उपकार करने पर भी वह रुचिकर न लगे, उसे दौर्भाग्य नामकर्म कहते है । ६३७ ) दु:स्वर नामकर्म किसे कहते है ? उत्तर : जिस कर्मोदय से जीव को कौएं जैसा अशुभ स्वर मिले, वह दुःस्वर नाम कर्म है । ६३८ ) अनादेय नामकर्म किसे कहते है ? उत्तर : जिससे युक्तियुक्त वचन भी अमान्य और अनादरणीय हो जाते हैं, वह अनादेय नामकर्म है। ६३९ ) अपयश नामकर्म किसे कहते है ? उत्तर : जिस कर्म के उदय से अपयश व अपकीर्ति होती है, उसे अपयश नामकर्म कहते है । ६४० ) नीचगोत्र किसे कहते है ? उत्तर : जिस कर्म के उदय से जीव को नीच कुल, वंश या जाति में जन्म लेना पडे, उसे नीच गोत्र कहते है । ६४१ ) दानान्तराय कर्म किसे कहते है ? उत्तर : स्वयं के पास देने योग्य दान हो, दान के फल को भी जानता हो, लेने वाला सुपात्र भी उपलब्ध हो, फिर भी दान न दिया जा सके, उसे दानान्तराय कर्म कहते है । ६४२ ) लाभान्तराय किसे कहते है ? उत्तर : दातार मिला हो, योग्य वस्तु भी सुलभ हो, विनयपूर्वक याचना की हो, तो भी वस्तु की प्राप्ति न हो, उसे लाभान्तराय कर्म कहते है । ६४३ ) भोगान्तराय कर्म किसे कहते है ? उत्तर : भोग्य सामग्री उपलब्ध हो फिर भी भोगी न जा सके, उसे भोगान्तराय कर्म कहते है । ६४४) उपभोगान्तराय कर्म किसे कहते है ? उत्तर : जिस कर्म के उदय उपभोग्य सामग्री होने पर भी उसका उपभोग न श्री नवतत्त्व प्रकरण २६९
SR No.022327
Book TitleNavtattva Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNilanjanashreeji
PublisherRatanmalashree Prakashan
Publication Year
Total Pages400
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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