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________________ ५७४) आयुष्य कर्म किसे कहते है ? उत्तर : जिस कर्म के अस्तित्व से जीव जीता है तथा क्षय होने पर मरता है, उसे आयुष्य कर्म कहते है। ५७५) नामकर्म किसे कहते है ? उत्तर : जिस कर्म के उदय से जीव विविध गति, जाति, शरीर, संस्थान, वर्ण, ___ गंध, रस, स्पर्श आदि प्राप्त करता है, उसे नामकर्म कहते है । ५७६) गोत्र कर्म किसे कहते है ? उत्तर : जिस कर्म से जीव उच्च अथवा नीच कुल, वंश, जाति में जन्म लेता है, उसे गोत्र कर्म कहते है। ५७७) अंतराय कर्म किसे कहते है ? - उत्तर : जो कर्म आत्मा के दान, लाभ, भोग, उपभोग, तथा, वीर्य रूप शक्तियों का घात करता है, उसे अंतराय कर्म कहते है। ५७८) मतिज्ञानावरणीय कर्म किसे कहते है ? । उत्तर : इन्द्रिय तथा मन से होने वाले ज्ञान को जो कर्म आवृत्त करता है, उसे ____ मतिज्ञानावरणीय कर्म कहते है। ५७९) श्रुतज्ञानावरणीय कर्म किसे कहते है ? उत्तर : शास्त्रों के पठन-पाठन से होने वाले ज्ञान को जो कर्म आच्छादित करता है, उसे श्रुतज्ञानावरणीय कर्म कहते है। ५८०) अवधिज्ञानावरणीय कर्म किसे कहते है ? .. उत्तर : मन तथा इन्द्रियों की सहायता के बिना रूपी द्रव्यों का प्रत्यक्ष ज्ञान कराने वाले अवधिज्ञान को जो आवृत्त करें, उसे अवधिज्ञानावरणीय कर्म कहते है। ५८१) मनःपर्यवज्ञानावरणीय कर्म किसे कहते है ? उत्तर : अढी द्वीप में रहे हुए संज्ञी पंचेन्द्रिय जीवों के मनोगत भावों को जानने वाले ज्ञान को जो आवृत्त करता है, उसे मनःपर्यवज्ञानावरणीय कर्म कहते है। ५८२ ) केवलज्ञानावरणीय कर्म किसे कहते है ? -------- श्री नवतत्त्व प्रकरण २५७
SR No.022327
Book TitleNavtattva Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNilanjanashreeji
PublisherRatanmalashree Prakashan
Publication Year
Total Pages400
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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