SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 218
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ में उत्पाद-व्यय रूप परिणमन होने पर भी द्रव्य की स्वरूप हानि नहीं होती । जीव द्रव्य अथवा अन्य कोई भी द्रव्य न तो उत्पन्न होता है, न नष्ट होता है। मात्र पर्याय परिणमन होता है। अतः द्रव्य की सत्ता त्रैकालिक है। ३३५) मूर्त (रूपी) द्रव्य किसे कहते है ? उत्तर : जिसमें वर्ण, गंध, रस, स्पर्श हो, वे द्रव्य मूर्त-रूपी कहलाते हैं । ३३६) अमूर्त (अरूपी) द्रव्य किसे कहते है ? उत्तर : जो पदार्थ वर्णादि से रहित है, जिन्हें इन्द्रियाँ ग्रहण नहीं कर सकती, वे अरूपी या अमूर्त कहलाते हैं । ३३७) आकाशास्तिकाय के कितने भेद हैं ? । उत्तर : आकाशास्तिकाय के २ भेद हैं - १. लोकाकाश, २. अलोकाकाश । ३३८) लोकाकाश किसे कहते है ? उत्तर : जिसमें धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, जीवादि द्रव्य रहते हैं, उसे लोकाकाश कहते है। ३३९) अलोकाकाश किसे कहते है ? उत्तर : जिसमें आकाश के अतिरिक्त किसी भी द्रव्य का अस्तित्व न हो, उसे अलोकाकाश कहते हैं । • ३४०) लोकाकाश तथा अलोकाकाश का परिमाण क्या है ? । उत्तर : लोकाकाश का परिमाण चौदह राजलोक है । इसके अतिरिक्त अनन्त ___अलोकाकाश है। ३४१) लोकाकाश तथा अलोकाकाश के प्रदेश समान है या असमान ? उत्तर : लोकाकाश के असंख्य प्रदेश हैं जबकि अलोकाकाश के अनंत प्रदेश ३४२) उपरोक्त दोनों आकाशास्तिकाय के ही भेद है, फिर यह असमानता क्यों ? उत्तर : धर्म-अधर्म, पुद्गल तथा जीव को जो अवकाश देता है, वह लोकाकाश है। चूंकि धर्म-अधर्मादि द्रव्य असंख्य प्रदेशी हैं अतः लोकाकाश भी असंख्य प्रदेशी है । अलोकाकाश में न जीव द्रव्य है, न अजीव द्रव्य ------------------ श्री नवतत्त्व प्रकरण २१५
SR No.022327
Book TitleNavtattva Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNilanjanashreeji
PublisherRatanmalashree Prakashan
Publication Year
Total Pages400
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy