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________________ ३२९) गुण किसे कहते है ? ---- उत्तर : अविच्छिन रूप से द्रव्य में रहने वाला गुण है । द्रव्य का जो सहभावी धर्म अर्थात् द्रव्य के आश्रित रहने वाला तथा स्वयं निर्गुण हो, उसे गुण कहते है । जैसे आत्मा का गुण चेतना, ज्ञान । सोने का गुण पीतत्व आदि । ३३०) पर्याय किसे कहते है ? उत्तर : द्रव्य की जो भिन्न-भिन्न अवस्थाएँ होती है, उसे पर्याय कहते है। जैसे - आत्मा की मनुष्यत्व, देवत्व तथा सोने की हार, कंगन आदि विभिन्न दशाएँ पर्याय हैं। ३३१) उत्पाद किसे कहते है ? उत्तर : उत्पन्न होना उत्पाद है। ३३२ ) व्यय किसे कहते है ? उत्तर : नष्ट होना व्यय है। ३३३) ध्रौव्य किसे कहते है ? उत्तर : स्थिर रहना अथवा अपने स्वरूप को सुरक्षित रखना ध्रौव्य है। ३३४) उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य, इस त्रिपदी के आधार पर द्रव्य की व्याख्या कीजिए। उत्तर : जैनदर्शन के अनुसार प्रत्येक द्रव्य (सत्) त्रिलक्षणात्मक है । तत्वार्थ सूत्र के पंचम अध्याय में 'उत्पादव्ययध्रौव्ययुक्तं सत्' सूत्रानुसार जिसमें उत्पाद, व्यय तथा ध्रौव्य है, वही सत् है। जो पूर्व अवस्थाओं को छोडता है और उत्तर अवस्थाओं को प्राप्त करता है, फिर भी अपने स्वरूप का त्याग नहीं करता, वह द्रव्य है। अवस्थाओं का परिणमन भी उसी में संभव है, जो ध्रुव या नित्य रहे । ध्रुवत्व या नित्यत्व के अभाव में न तो पूर्ववर्ती अवस्था संभव है, न ही उत्तरवर्ती । जैसे स्वर्ण का कभी कंगन बनवा लिया तो कभी हार। कंगन का व्यय-विनाश हुआ और हार का उत्पाद हुआ परंतु इसमें स्वर्ण का ध्रुवत्व ज्यों का त्यों रहा । ठीक इसी प्रकार प्रत्येक द्रव्य २१४ . श्री नवतत्त्व प्रकरण
SR No.022327
Book TitleNavtattva Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNilanjanashreeji
PublisherRatanmalashree Prakashan
Publication Year
Total Pages400
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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