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________________ '१४६) करण पर्याप्ता जीव का काल कितना होता है ? उत्तर : जीव के स्वयोग्य पर्याप्तियाँ पूर्ण करने के बाद स्वयं का जितना आयुष्य है, उतना पूर्ण करने तक का काल करण पर्याप्ता कहलाता F :. १४७) करण अपर्याप्ता जीव का काल कितना होता है ? उत्तर : जो काल लब्धि पर्याप्ता जीवों का है, उसमें अपर्याप्त अवस्था वाला ___एक अंतर्मुहूर्त का काल करण अपर्याप्ता जीवों का काल कहलाता है। १४८) प्रत्येक जीव नियमतः कितनी पर्याप्तियाँ पूर्ण करने के बाद मरण को प्राप्त होता है ? उत्तर : प्रत्येक जीव कम से कम तीन पर्याप्तियाँ पूर्ण करने के बाद ही मृत्यु को प्राप्त होता है। क्योंकि तीन पर्याप्तियाँ पूर्ण किये बिना जीव के परभव का आयुष्य नहीं बंधता है। जब तक आयुष्य बंध नहीं होता तब तक जीव मरण को भी प्राप्त नहीं होता । प्रत्येक अपर्याप्त जीव प्रथम ३ पर्याप्तियाँ तथा पर्याप्त जीव स्वयोग्य चार-पांच अथवा छह पर्याप्तियाँ पूर्ण करने के बाद ही मरता है। १४९) पर्याप्ति किसे कहते है ? उत्तर : पर्याप्ति अर्थात् विशेष शक्ति-सामर्थ्य । जीवन जीने के लिये उपयोगी पुद्गलों को ग्रहण कर उनका परिणमन करने की आत्मा की शक्ति विशेष को पर्याप्ति कहते है। १५०) पर्याप्तियाँ कितनी व कौन-कौन सी हैं ? उत्तर : पर्याप्तियाँ छह हैं - १. आहार पर्याप्ति, २. शरीर पर्याप्ति, ३. इन्द्रिय पर्याप्ति, ४. श्वासोच्छ्वास पर्याप्ति, ५. भाषा पर्याप्ति, ६. मनः पर्याप्ति । १५१) आहार पर्याप्ति किसे कहते है ? उत्तर : जीव जिस शक्ति के द्वारा आहार के पुद्गलों को ग्रहण कर खल-रस रूप में परिणत करता है, उसे आहार पर्याप्ति कहते है। इसका काल एक समय का ही है। १५२) शरीर पर्याप्ति किसे कहते है ? -------- श्री नवतत्त्व प्रकरण - -
SR No.022327
Book TitleNavtattva Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNilanjanashreeji
PublisherRatanmalashree Prakashan
Publication Year
Total Pages400
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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