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________________ उत्तर : निर्जरा के मुख्य दो प्रकार हैं - (१) द्रव्यनिर्जरा, (२) भाव निर्जरा । ४०) उक्त परिभाषा में "देशतः" शब्द का प्रयोग क्यों किया गया है ? उत्तर : उक्त परिभाषा में "देशतः" शब्द का प्रयोग ही उपयुक्त है क्योंकि मोक्षतत्त्व का अर्थ भी निर्जरा (कर्मों की) होता है, किन्तु वहाँ सर्व कर्मों की निर्जरा होती है, जबकि निर्जरा तत्त्व में आंशिक रुप से यानि देशतः कर्मों की निर्जरा होती है। ४१) द्रव्य निर्जरा किसे कहते है ? उत्तर : बंधे हुए कर्मों का अल्पांश रूप से क्षय होना द्रव्य निर्जरा है। ४२) भाव निर्जरा किसे कहते है ? उत्तर : बंधे हुए कर्मों को आंशिक रूप से क्षय करने में कारण रूप जीव के जो विशुद्ध अध्यवसाय है, उसे भाव निर्जरा कहते है । ४३) निर्जरा के अन्य भेद कौनसे हैं ? उत्तर : निर्जरा के अन्य २ भेद हैं - सकाम निर्जरा तथा अकाम निर्जरा । ४४) सकाम निर्जरा किसे कहते है ? उत्तर : आत्मिक गुणों को पैदा करने के लक्ष्य से जिस धर्मानुष्ठान का आचरण सेवन किया जाय अर्थात् अविरत सम्यग्दृष्टि जीव, देशविरत श्रावक तथा सर्वविरत मुनि महात्मा, जिन्होंने सर्वज्ञोक्त तत्त्व को जाना है और उसके परिणाम स्वरूप जो धर्माचरण किया है, उनके द्वारा होने वाली निर्जरा सकाम निर्जरा है। ४५) अकाम निर्जरा किसे कहते है ? उत्तर : सर्वज्ञ कथित तत्त्वज्ञान के प्रति अल्पांश रूप से भी अप्रतीति वाले जीव-अज्ञानी तपस्वियों की अज्ञानभरी कष्टदायी क्रियाएँ तथा पृथ्वी, वनस्पति पंच स्थावर काय जो सर्दी-गर्मी को सहन करते हैं, उन सबसे जो निर्जरा होती है, वह अकाम निर्जरा कहलाती है। ४६) बंध किसे कहते है ? उत्तर : जीव के साथ नीर-क्षीरवत् कर्म वर्गणाएँ संबद्ध हो, उसे बंध कहते ४७) बंध के दो प्रकार कौन-कौन से हैं ? १७० श्री नवतत्त्व प्रकरण
SR No.022327
Book TitleNavtattva Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNilanjanashreeji
PublisherRatanmalashree Prakashan
Publication Year
Total Pages400
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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