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________________ उत्तर : जीव की शुभाशुभ योग प्रवृत्ति से आकृष्ट होकर कर्म वर्गणा का आना अर्थात् जीवरूपी तालाब में पुण्य-पाप रूपी कर्म-जल का आगमन आश्रव कहलाता है। ३१) आश्रव के मुख्य भेद कितने हैं ? उत्तर : आश्रव के मुख्य भेद २ हैं - १. द्रव्यं आश्रव, २. भाव आश्रव. ३२) द्रव्याश्रव किसे कहते है ? उत्तर : जीव में शुभाशुभ कर्मों का आगमन होना द्रव्याश्रव कहलाता है । जैसे ___कालसौकरिक कसाई । ३३) भावाश्रव किसे कहते है ? उत्तर : कर्मों के आगमन में कारण रूप जीव के जो राग एवं द्वेषयुक्त ____ अध्यवसाय हैं, उसे भावाश्रव कहते है। ३४) संवर किसे कहते है ? उत्तर : जीव में आते हुए कर्मों को व्रत-प्रत्याख्यान आदि के द्वारा रोकना, अर्थात् जीव रूपी तालाब में आश्रव रूपी नालों से कर्म रूपी पानी के आगमन को त्याग-प्रत्याख्यान रूपी पाल(दीवार) द्वारा रोकना, संवर कहलाता है। ३५) संवर के मुख्य भेद कितने हैं ? उत्तर : संवर के मुख्य भेद २ है - द्रव्य संवर तथा भाव संवर । ३६) द्रव्य संवर किसे कहते है ? उत्तर : शुभाशुभ कर्म पुद्गलों को रोकना द्रव्य संवर है। ३७) भाव संवर किसे कहते है ? उत्तर : शुभाशुभ कर्मों को रोकने में कारणभूत जीव के जो अध्यवसाय हैं, उसे भाव संवर कहते है। ३८) निर्जरा किसे कहते है ? उत्तर : आत्मा के साथ बंधे हुए कर्मों का देशतः क्षय होना या अलग होना, निर्जरा कहलाता है। ३९) निर्जरा के मुख्य कितने प्रकार हैं ? नाम लिखो । ---------- श्री नवतत्त्व प्रकरण
SR No.022327
Book TitleNavtattva Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNilanjanashreeji
PublisherRatanmalashree Prakashan
Publication Year
Total Pages400
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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