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________________ सलिंग - स्वलिंग सिद्ध सयंबुद्धा - स्वयंबुद्ध सिद्ध थी - स्त्रीलिंग सिद्ध बुद्धबोहिय - बुद्धबोधित सिद्ध नर - पुरुषलिंग सिद्ध इक्क - एकसिद्ध नपुंसा - नपुंसकलिंग सिद्ध अणिक्का - अनेक सिद्ध पत्तेय - प्रत्येकबुद्ध सिद्ध | य - और भावार्थ जिन सिद्ध, अजिन सिद्ध, तीर्थ सिद्ध, अतीर्थ सिद्ध, गृहस्थलिंग सिद्ध, अन्यलिंग सिद्ध, स्वलिंग सिद्ध, स्त्रीलिंग सिद्ध, पुरुषलिंग सिद्ध, नपुंसकलिंग सिद्ध, प्रत्येकबुद्ध सिद्ध, स्वयंबुद्ध सिद्ध, बुद्धबोधित सिद्ध, एक सिद्ध, अनेक सिद्ध, ये सिद्धों के १५ भेद हैं ना५५॥ विशेष विवेचन प्रस्तुत गाथा में जो सिद्धों के १५ भेद बताये है, वह भेद केवल बाह्य अपेक्षा से है। उनके केवलज्ञान या सिद्धावस्था में कोई अंतर नहीं है । कोई भी जीव किसी भी दशा में सिद्ध हो, उनके भावों की पिशुद्धता, निर्मलता एक - समान ही होती है। प्रस्तुत गाथा में जैनदर्शन की निष्पक्षता तथा विराटता के दर्शन स्पष्ट होते हैं । जिनेश्वरों ने केवल जैन साधु या श्रावक-श्राविकाओं के लिये ही मोक्ष में जाने का विधान नहीं किया है - सेयंबरो या आसंबरो, बुद्धो य अहव अन्नोवा । समभाव भावियप्पा, लहइ मुक्खं न संदेहो ॥ अर्थात् चाहे श्वेताम्बर जैन हो या दिगंबर जैन हो, बौद्धदर्शनी (बुद्ध का अनुयायी) हो या फिर अन्य किसी दर्शन या मतवाला हो तो भी समभाव (सम्यग्-दर्शन-ज्ञान-चारित्र) द्वारा भावित-वासित हुआ आत्मा (जीव) मोक्ष पा सकता है, इसमें कोई संदेह नहीं है। . इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि अन्य दर्शनी बाबा, तापस आदि भी अहिंसा, सत्य, अपरिग्रह आदि मार्गों को स्वीकार कर दृढतापूर्वक उनका पालन करने पर केवलज्ञान तथा मोक्ष पा जाते हैं । यदि उनका आयुष्य अन्तर्मुहूर्त से - - १५६ श्री नवतत्त्व प्रकरण - - - - - - - -
SR No.022327
Book TitleNavtattva Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNilanjanashreeji
PublisherRatanmalashree Prakashan
Publication Year
Total Pages400
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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