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________________ ११. भव्य मार्गणा-२ : (१) भव्य, (२) अभव्य । १२. सम्यक्त्व मार्गणा-६ : (१) औपशमिक, (२) क्षायोपशमिक, (३) क्षायिक, (४) मिश्र, (५) सास्वादन, (६) मिथ्यात्व । १३. संज्ञी मार्गणा-२ : (१) संज्ञी, (२) असंज्ञी । १४. आहार मार्गणा-२ : (१) आहार, (२) अनाहार । इन ६२ मार्गणाओं का अर्थ प्रश्नोत्तरी में विस्तृत रूप से स्पष्ट किया गया है। किन मार्गणाओं में मोक्ष की प्ररूपणा गाथा , नरगइ पणिदि तस भव, सन्ति अहक्खाय खइअ सम्मत्ते । मुक्खोऽणाहार केवल, दंसर्णनाणे न सेसैंसु ॥४६॥ अन्वय... नरगइ, पणिदि-तस-भव-सन्नि-अहक्खाय-खंइअ-सम्मत्ते, अणाहार, केवल-दंसण नाणे, मुक्खो सेसेसुन ॥४६॥ .. . संस्कृत पदानुवाद नरगति-पंचेन्द्रिय-त्रस-भव्य-संज्ञि-यथाख्यात-क्षायिक-सम्यक्त्वे। । मोक्षोऽनाहार-केवल-दर्शन-ज्ञाने न शेषेषु ॥४६॥ शब्दार्थ नरगइ - मनुष्य गति मुक्खो - मोक्ष पणिदि - पंचेन्द्रिय जाति अणाहार - अनाहार तस - सकाय केवल-दसण - केवलदर्शन भव - भव्य नाणे - केवलज्ञान सन्नि - संज्ञी न - नहीं अहक्खाय - यथाख्यात चारित्र सेसेसु - शेष (मार्गणाओं) में खइअसम्मत्ते - क्षायिक सम्यक्त्व भावार्थ मनुष्यगति, पंचेन्द्रिय जाति, त्रसकाय, भव्य, संज्ञी, यथाख्यात ------------------------ श्री नवतत्त्व प्रकरण
SR No.022327
Book TitleNavtattva Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNilanjanashreeji
PublisherRatanmalashree Prakashan
Publication Year
Total Pages400
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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