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________________ भव्य, सम्यक्त्व, संज्ञी तथा आहार ये चौदह मार्गणाएँ है ॥४५॥ विशेष विवेचन प्रस्तुत गाथा में १४ मागणाओं का उल्लेख है। मार्गणा अर्थात् विवक्षित भाव का अन्वेषण - शोधन । किसी भी पदार्थ का विस्तार से विचार करने और समझने के लिये, उस पदार्थ के गहरे तत्त्व-रहस्य के स्वरूप की खोज करने के लिये इन १४ मार्गणाओं द्वारा विचार किया जाता है। इन १४ मार्गणाओं के कुल ६२ भेद हैं - ___१. गति मार्गणा-४ : (१) देवगति, (२) मनुष्य गति, (३) तिर्यञ्चगति, (४) नरकगति । ___ २. इन्द्रिय मार्गणा-५ : (१) एकन्द्रिय, (२). बेहेन्द्रिय, (३) तेइन्द्रिय, (४) चतुरिन्द्रिय तथा (५) पंचेन्द्रिय । ३. काय मार्गणा-६ : (१) पृथ्वीकाय, (२) अप्काय, (३) तेउकाय, (४) वायुकाय, (५) वनस्पतिकाय, (६) त्रसकाय । ४. योग मार्गणा-३ : (१) मनोयोग, (२) चनयोग, (३) काययोग । ५. वेद मार्गणा-३ : (१) स्त्रीवेद, (२) पुरुषवेद, (३) नपुंसकवेदे । ६. कषाय मार्गणा-४ : (१) क्रोध, (२) मान, (३) माया, (४) लोभ । ७. ज्ञान मार्गणा-८ : (१) मतिज्ञान, (२) श्रुतज्ञान, (३) अवधिज्ञान, (४) मनःपर्यवज्ञान, (५) केवलज्ञान, (६) मतिअज्ञान, (७) श्रुतअज्ञान, (८) विभंगज्ञान (अवधि अज्ञान)। ८. संयम-चारित्र मार्गणा-७ : (१) सामायिक, (२) छेदोपस्थापनीय, (३) परिहार विशुद्धि, (४) सूक्ष्म संपराय, (५) यथाख्यात, (६) देशविरति तथा (७) अविरति । ९. दर्शन मार्गणा-४ : (१) चक्षुदर्शन, (२) अचक्षुदर्शन, (३) अवधि दर्शन, (४) केवलदर्शन । १०. लेश्या मार्गणा-६ : (१) कृष्ण लेश्या, (२) नील लेश्या, (३) कापोत लेश्या, (४) पीत लेश्या, (५) पद्म लेश्या, (६) शुक्ल लेश्या । श्री नवतत्त्व प्रकरण -------- १३४
SR No.022327
Book TitleNavtattva Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNilanjanashreeji
PublisherRatanmalashree Prakashan
Publication Year
Total Pages400
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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