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________________ नौ अनुयोग द्वार रूप मोक्ष के नौ भेद गाथा संतपय परूवणया, दव्वपमाणं च खित्त फुसणा य । कालो अ अंतरं भाग, भावे अप्पाबहुं चेव ॥४३॥ अन्वय संतपय परुवणया, दव्वपमाणं च खित्त फुसणा य, कालो अ अंतरं भाग, भावे अप्पाबहुं चेव ॥४३॥ संस्कृतपदानुवाद सत्पद प्ररूपणा, द्रव्य प्रमाणं च क्षेत्रं स्पर्शना च । कालाश्चान्तरं भागो, भावोऽल्पबहुत्त्वं चैव ॥४३॥ शब्दार्थ संतपय - सत्पद (विद्यमान पद की)| कालो - काल परूवणया - प्ररुपणा अ - और दव्वपमाणं - द्रव्य प्रमाण अंतरं - अन्तर च - और भाग - भाग खित्त - क्षेत्र भावे - भाव फुसणा - स्पर्शना अप्पाबडं - अल्पबहुत्व य - और चेव - निश्चय . भावार्थ सत्पदप्ररूपणा द्रव्यप्रमाण, क्षेत्र, स्पर्शना, काल, अन्तर, भाग, भाव, अल्पबहुत्व निश्चय से अनुयोगद्वार है ॥४३॥ विशेष विवेचन प्रस्तुत गाथा में ९ अनुयोग द्वारों की मीमांसा की गयी है। जैन सिद्धान्तों में पदार्थ का विचार करने के लिये, जिज्ञासुओं की शंकाओं का समाधान करने के लिये उनकी शंकाओं के अनुकूल अलग-अलग मार्ग बतलाये हैं, उन्हें श्री नवतत्त्व प्रकरण १२९
SR No.022327
Book TitleNavtattva Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNilanjanashreeji
PublisherRatanmalashree Prakashan
Publication Year
Total Pages400
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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