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________________ आठ कर्मों का जघन्य स्थितिबन्ध गाथा बारस मुहुत्तं जहन्ना, वेयणिए अट्ठ नाम गोएसु । सेसाणंतमुहत्तं, एयं बंधटिइमाणं ॥४२॥ अन्वय वेयणिए जहन्ना बारस, मुहत्तं नाम गोएसु अट्ठ, सेसाणं अंतमुहत्तं, एयं बंधट्ठिइमाणं ॥४२॥ संस्कृत पदानुवाद द्वादश मुहूर्तानि जघन्या, वेदनीयेऽष्टौ नामगोत्रयोः शेषाणामन्तर्मुहूर्त-मेतद् बंधस्थितिमानम् ॥४२॥ शब्दार्थ बारस - बारह गोएसु - गोत्र कर्म का मुहुत्तं - मुहूर्त सेसाणं - शेष (पाँच कर्मों) का जहन्ना - जघन्य अन्तमुहुत्तं - अन्तर्मुहूर्त वेयणिए - वेदनीय कर्म का | एयं - यह .. अट्ठ - आठ बंधइि - स्थिति बंध का नाम - नाम कर्म का माणं - प्रमाण है। भावार्थ वेदनीय कर्म का जघन्य स्थिति बंध बारह मुहूर्त, नाम तथा गोत्र का आठ मुहूर्त और शेष पाँच कर्मों का जघन्य स्थितिबंध अंतर्मुहूर्त है ॥४२॥ विशेष विवेचन पूर्वोक्त गाथाओं में कर्म का स्वरूप तथा उनकी उत्कृष्ट स्थिति का विश्लेषण किया गया। प्रस्तुत गाथा में उन कर्मों की जघन्य स्थिति का उल्लेख है। जघन्य अर्थात् कम से कम । कोई भी कर्म जब आत्मा के साथ बंधता है, तो उसकी उत्कृष्ट या जघन्य स्थिति का निर्धारण उसी समय हो जाता है। गाथार्थ स्पष्ट है। १२८ त्व प्रकरण
SR No.022327
Book TitleNavtattva Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNilanjanashreeji
PublisherRatanmalashree Prakashan
Publication Year
Total Pages400
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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