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________________ ८ कर्मों की उत्कृष्ट स्थिति गाथा नाणे य दंसणावरणे, वेयणिए चेव अंतराए अ । तीसं कोडाकोडी, अयराणं ठिइ अ उक्कोसा ॥४०॥.. सत्तरि कोडाकोडी, मोहणीए वीस नाम गोएसु । तित्तीसं अयराइं, आउ टिइ बंध उक्कोसा ॥४१॥ अन्वय नाणे य दंसणावरणे, वेयणिए च एव अंतराए अ, उक्कोसा ठिइ अयराणं, तीसं कोडाकोडी ॥४०॥ मोहणीए सत्तरि, नामगोएसु वीस कोडाकोडी, उक्कोसा आउ ठिइ, बंध तित्तीसं अयराई ॥४१॥ संस्कृतपदानुवाद . ज्ञाने च दर्शनावरणे, वेदनीये चेवान्तराये च । त्रिंशत्कोटीकोट्योऽतरणां, स्थितिश्चोत्कृष्टा ॥४०॥ सतति कोटी कोट्य, मोहनीये विशतिर्नाम गोत्रयोः । त्रयस्त्रिंशदतराण्यायुः, स्थितिबन्ध उत्कर्षात् ॥४१॥ - शब्दार्थ नाणे - ज्ञानावरणीय अ - और य - और ... तीसं कोडाकोडी - तीस कोटाकोटी दंसणावरणे - दर्शनाबरणीय - अयराणं - सागरोपम वेयणिए - वेदनीय "ठि - स्थिति चेव - निश्चय से . अ - और अंतराए - अंतराय उक्कोसा - उत्कृष्ट - - शब्दार्थ सत्तरि - ७० (सत्तर) कोडाकोडी - कोडाकोडी मोहणीए - मोहनीय का वीस - बीस - - - - - - - - श्री नवतत्त्व प्रकरण १२५
SR No.022327
Book TitleNavtattva Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNilanjanashreeji
PublisherRatanmalashree Prakashan
Publication Year
Total Pages400
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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