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________________ उप देववंदन जाय अर्थसहित. समो के० ) श्रगीयारमो अधिकार चत्तारि ० दस ए गायोक्त एटले जे आई, नद्यंत अने चचारि, ए ( तिमि के० ) त्रण अधिकार, ते (सु यपरंपरा के ) श्रुतनी परंपराथी एटले जेम सिद्धांतनुं व्याख्यान बे, तेम तथा गीतार्थ संप्र दायश्री जाणवा ॥ ४६ ॥ व्यावस्सय चुलीए, जं जणियं सेसया जहिचाए ॥ तेां नद्यंताइवि, प्रहिगारा सु यमया चैव ॥ ४७ ॥ अर्थः- ( जें के० ) जेम ( श्रावस्तयचुपीए ho) श्रावश्यक सूनी चूने विषे तथा प्रति क्रमण चूर्तीमध्ये (मणियं के० ) कांबे. जे चिंतादिक (सेसया के० ) शेष अधिकार ते ( fear ho ) यथेच्छायें जालवा. (तेलं के० ) ते कारण माटें ए (नयंताइवि के ) तसे सिहरे इत्यादिक गाथायें पण जे ( अहिगारा ho) अधिकारी ते सर्व ( सुयमया के‍ ) श्रु तमय जावा. ( चेव के० ) चकार पादपूर्णार्थ बेने एव शब्द निश्चयवाचक बे ॥ ४७ ॥
SR No.022326
Book TitleChaityavandanadi Bhashya Trayam Balavbodh Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendrasuri
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages332
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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