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________________ ७ देववंदन नाष्य अर्थसहित. नपति, ए अधोलोकनां चैत्य तथा मनुष्यलोक मां तो शाश्वती अने अशाश्वती प्रतिमा ए त्रण लोकनां चैत्य वांद्यां. एवी रोते ए गाथा मध्ये सर्व तीर्थवंदना लक्षण अर्थ घणा बे, ते सर्व व सुदेव हिंग प्रमुख ग्रंथोथी जो लेवा. अहीयां विस्तार घणो थाय माटे लख्या नथ ॥ ५ ॥ नव अहिगारा इह ललि, अविचरा वित्तिा अणुसारा ॥ तिमि सुयपरंपर या, बीयन दसमो गारसमो ॥४६॥ ___ अर्थः-(इह के) ए बार अधिकारमांनी पहेलो, त्रीजो, चोथो, पांचमो, उठो, सातमो, आठमो, नवमो, अने बारमो, ए (नव अहिगा रा के०) नव अधिकार ते (ललिअविवरा के०) ललितविस्तरा नामें नाष्यनी (वित्तिा के) वृत्ति आदिकना (अणुसारा के ) अनुसारश्रकी जासवा. अने (बीयन के ) बीजो अधिकार, जेअ अईआ सिक्षा तथा ( दसमो के) दशमो अधिकार नङितसेल ए गाथोक्त तथा (गार
SR No.022326
Book TitleChaityavandanadi Bhashya Trayam Balavbodh Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendrasuri
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages332
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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