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देववंदन जाय अर्थसहित.
इरियाए || नव नन त्र् मरकर सयं, डुती स पय संपया ॥ ३१ ॥
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अर्थ :- ( पशिवाय के० ) प्रणिपात रुकने विषे ( अठ्ठावीसं के० ) अठ्ठावीश (अरकराई के०) अ दर बे, ( तहाय के० ) तथाच एटले तेमज वली ( इरियाए के० ) इरियावहिने विषे ( नवननश्रम रकरलयं के० ) नवनवति अक्षरशतं एटले नवा ये अधिक एकशो अक्षर जाणवा अर्थात् एकशो ने नवाणुं अक्षर जाणवा, तथा ( तीस के० ) वत्रीश (पय के० ) पद जावां अने (संपया के० ) संपदा ( श्रठ के ) आठ जाणवी ॥ ३१ ॥ 'ए आठ संपदाना पदनी संख्या तथा संपदाना यदि पद कहे बे.
दुग दुग इग चन इग पण, इगार बग इरिय संपयाइ पया ॥ इच्चा इरि गम पाणा, जे मे एगिंदि अनि तस्स ॥ ३२ ॥
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अर्थ:- पहेली संपदा ( डुग के० ) बे पदनी, बीजी संपदा पण ( डुग के ) बे पढ़नी त्रीजी