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देववंदन नाष्य अर्थसहित. ४५ के) अहावीश संपदा, तथा पुस्करवरदीनी (सोलस के० ) सोल संपदा, (य के ) वली सिहाणंबुहागनी (वीस के ) वीश संपदा जा गवी. ए लगारेक रहेवानुं स्थान तथा अर्थनो (बीसामा के०) वीलामो लेवानुं स्थान तेने सं पदा कहीये. ते (कमसो के० ) अनुक्रमें ( मंग ल के ) नवकारने विषे, (रिया के ) रिया वहिने विषे अने ( सकथयाईसु के0) शक्रस्तवा दिक पांच दमकने विष ए सर्व मली सात सूत्रां ने विषे सर्व संपदा (सगननई के०) सप्तनवती एटले सत्तागुं थाय ॥ ए॥ हवे नवकारना अक्षर तथा पद अने संपदा
विवरी देखामे . वणसहि नव पय, नवकारे अ संपया तब ॥ सग संपय पय तुला, सतरस्कर अहमी दुपया ॥३०॥ “ नवस्कर अ मी उपयही" इत्यन्ये
अर्थः-(नवकारे के०) नवकारने विषे (व